“संवाद–राधा-कृष्ण”
“संवाद–राधा-कृष्ण”
बड़ा नटखट है तू कान्हा,मुझे क्यों रोज छलता है?
मुझे तू भूलकर,और जा मेरी सखियों से मिलता है।
तू अब न रोक मेरी राह,न पकड़ों हाथ को मेरे,
बदल कर रूप तू ,दिनरात मुझको तंग करता है।
न रूठो राधेरानी, गोपियों से तू क्यों जलती है?
सताऊं न तुझे दिनभर,न मेरा मन ये भरता है।
तेरे मेरे में कुछ अंतर नही बाकी रहा है अब,
तुझे कोई कष्ट हो तो दर्द तुम्हारा मैं भी सहता हूँ।
तू रो देती है जो अक्सर तो केवल तू नही रोती,
तेरी आँखों से अश्रु बनकर बस मैं ही बरसता हूँ।
यदि सच है यही कान्हा तो मुझको तुम प्रमाण यह दो,
कि हम दोनों का मन एक दूसरे के मन में बसता है।
तेरी काया हूँ मैं और मेरी काया ही तुम्हारी है,
तेरी काया को अपना ही समझ कर छू मैं सकता हूँ।
तेरे चरणों की मैं सौगंध खा इक बात कहता हूँ,
कि राधे तू मेरी,मैं तेरा,तेरे दिल में रहता हूँ।
“राधे-कृष्ण” का मतलब “राह-दे-कृष्ण” होता है,
समझता है जो इस सच को,उसीका कृष्ण होता है।
उसी का कृष्ण होता है।
अनुजा दुबे ‘पूजा’