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बहनों का पवित्र राखी का बन्धन

बहनों का पवित्र राखी का बन्धन

मेघों की द्युति चमक रही है,
घनघोर घटा नभ आच्छादित,
जो बादल बरसें आज निरंतर,
जन गण मानस हो रहें मुदित।
पावन पावस ऋतु मन भावन,
सावन का मधु मास सुहावन,
हरीतिमा जगत में कण-कण,
पुलकित हैं जीव चराचर मन।

पावन सावन की मन भावन,
नाग पंचमी भी आने वाली है,
नागदेवता होंगे हमसे प्रसन्न,
शिव की आराधना निराली है।
ख़ुशियों का त्योहार मनाने,
पूर्णिमा तिथि आने वाली है,
रक्षा बंधन का भाई-बहन का
पर्व वर्ष भर बाद फिर लाई है।

भाई के मस्तक का रोचना तिलक
बहनों का पवित्र राखी का बन्धन,
सनातन की परंपरा ये ले आती है,
ऋषियों मुनियों का पावन वन्दन।
इन्द्रदेव को उनकी भार्या शची ने,
राजा बलि को माता श्रीलक्ष्मी ने,
श्रीकृष्ण को द्रुपदसुता द्रौपदी ने,
सर्व प्रथम राखी बांधी थी इन्होंने।

बादशाह हुमायूँ को रानी कर्णावती ने
इसी दिन राखी भेज मदद माँगी थी,
मुग़लों में रक्षाबंधन की रीति अकबर,
जहाँगीर व शाहजहाँ तक होती थी।
मुग़लों के तानाशाह औरंगजेब ने
दरबारी रक्षाबंधन की रोक लगाई,
आदित्य पर भारत में रक्षाबंधन की
पावन परंपरा अब तक चलती आई।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ

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