सनातन संस्कृति
सनातन संस्कृति
आदिम युग में जहाॅं विश्व में,
पशु से बदतर था इन्सान।
वहीं हमारे भारत में था,
नभ में उड़ता उन्नत यान।।
किरण मात्र को तरस रहा था,
अन्धकारमय जब संसार ।
तब भारत का सूर्य पवन पर,
जल पावक पर था अधिकार।
शेष विश्व में भटक रहा था,
मानव जब पशु – सा नादान।
विश्व – भ्रमण कर सिखा रहे थे,
ऋषि-मुनि तब जीवन का ज्ञान।।
ऋणी हमारा सदा रहा है,
और रहेगा यह संसार।
युग अनन्त तक ऋषि-चिन्तन से
होगा जग का नित उद्धार।।
त्यागो हीन भावना मन की,
भारतवासी वीर सपूत।
अपने को पहचानो देखो,
तुम हो दैव शक्ति-सम्भूत।।
असभ्यता के अन्धकार में,
शेष विश्व जब भटक रहा था।
भारत की तब ऋषि-संस्कृति का,
सूर्य तेज से चमक रहा था।।
नंग – धड़ंग अवस्था में जब,
दुनिया दर-दर घूम रही थी।
आर्यावर्त के आर्यों की तब,
धोती नभ में सूख रही थी।।
असभ्य जग के बर्बर नर जब,
आमिष कच्चा खाते थे। आर्यावर्त के आर्य लोग तब,
छप्पन भोग लगाते थे।।
सबसे पहले भारत में ही,
किरण सभ्यता की थी फूटी। शेष विश्व को मिली वही सब,
जो-जो कुछ हमसे थी छूटी।।
प्रोफेसर (डॉ) मिथिलेश कुमार त्रिपाठी
जौनपुर उत्तर प्रदेश