दोहा
दोहा
अंबानी अभिमान में, धर्म कर्म गया भूल।
सत्य सनातन धर्म पर ,फेंक रहा है, धूल ।
आता समय, विपरीत जब, देता मति भ्रमाय।
तन तन कर, होता,पतन, ये सद्ग्रंथ बताय।
कंश और लंकेश सम,इसको भी अभिमान।
ईश्वर के, विपरीत का,जग में नहीं स्थान।
गीत
देखो ऐसे धन के,धिगानें, लक्ष्मी का वरदान।
मानव बन बैठा भगवान।
हद बेशर्मी, की पार करदी।
जैसे ईश्वर की हार कर दी।
दौलत सोहरत,घर में भर दी।
उसे न कान्हा से हम दरदी।
टेक पत्नी के लहंगे में, नीचे, छपवाये भगवान 0….. मानव बन बैठा भगवान।
ईश्वर से भी,बड़ा है, पैसा।
चमत्कार दिखलाये, पैसा।
आज समय ये,कैसा आया।
श्री सुत नें श्रीपति को नचाया।
टेक अभिमानी भारी अंबानी, ये कैसा धनवान 0…..
नर नारायण को न मानें।
धन के नशा में कैसे नसानें।
धन माया कुछ संग न जाने।
जानें खाली हाथ है, जाने।
टेक ईश्वर को भी भूल गया है,मद में अब इंसान 0….
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झूठ बोल कर देश को लूटा।
सच्चा नहीं है, ये, है,झूठा।
28 दिन का महीना बनाया।
माया में कैसा भरमाया।
झूठ कपट छल दंभ के आगे, निर्बल भये बलराम 0…….
बलराम यादव देवरा