जीवन को वसंत करो
पतझड़ से इस जीवन को तुम,
आकर कंत वसंत करो।
साहित्यिक संप्रेषण को अब,
सदृश निराला ,पंत करो।।
शब्द -शब्द माणिक कर दो तुम,
भरो प्रेम की गागर तुम।
गुंजित सारा जग हो जाए,
वंशी तुम नटनागर तुम।।
भाव सुपावन गंगाजल कर,
लेखन को जीवंत करो।
साहित्यिक संप्रेषण को अब,
सदृश निराला,पंत करो।।
श्वेता की वीणा बजती हो,
सात सुरों की सरगम हो।
अलंकार रस छंद निराले,
नवल सृजन का उद्गम हो,
नव रस की रसधारा में तुम,
पीडाओं का अंत करो।
साहित्यिक संप्रेषण को अब,
सदृश निराला,पंत करो।।
निष्ठाओं की डोर पकड़कर ,
तन -मन अर्पण करना है।
दिनकर -सा उजियारा करने ,
सार्थक चिंतन करना है।।
जग -कल्याण भावना रखकर,
मन को सज्जन संत करो ।
जीवन को वसंत करो
साहित्यिक संप्रेषण को अब,
सदृश निराला ,पंत करो।।
शब्द -शब्द माणिक कर दो तुम,
भरो प्रेम की गागर तुम।
गुंजित सारा जग हो जाए,
वंशी तुम नटनागर तुम।।
भाव सुपावन गंगाजल कर,
लेखन को जीवंत करो।
साहित्यिक संप्रेषण को अब,
सदृश निराला,पंत करो।।
श्वेता की वीणा बजती हो,
सात सुरों की सरगम हो।
अलंकार रस छंद निराले,
नवल सृजन का उद्गम हो,
नव रस की रसधारा में तुम,
पीड़ाओं का अंत करो।।
मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
जबलपुर मध्यप्रदेश