वृक्ष
वृक्ष
ये वहीं वृक्ष हैं जो हमें प्राण वायु देते हैं।
ये वहीं लता हैं जो हमें सत आयु देते हैं।।
वृक्ष से ही मैं तुम और हम सबका जीवन।
वृक्ष से ही जीव जंतु पशु खग पंख पवन।।
पर वृक्षों का नाश क्यों कर रहा हूँ।
अपने पंखों को ही क्यों कुतर रहा हूँ।।
वृक्षों से ही पलंग सेज बैठकी मेरा।
वृक्ष को ही मैं क्यों जला रहा हूँ।।
वृक्ष से सूखी लकड़ी भोजन मेरा।
जंगलों को ही क्यों जला रहा हूँ।।
वृक्ष लता पेड़ पौधों से हरियाली व छाया।
वृक्षों से फल फूल मिले रहे निरोगी काया।।
पंथी को सदैव मिले छाया।
उस छाया को मैं क्यों मिटा रहा हूँ।।
फूलों से गंध फलों से भूख मिटाता रहा हूँ।
पर्यावरण से मिले लाभ पाठ पढ़ाता रहा हूँ।।
उस पर्यावरण को क्यों उजाड़ रहा हूँ।
पेड़ों से वारीश अन्न का उपज संभव है।
पत्तों से खाद भूमि का उर्वरा संभव है।।
उस उर्वरा को मैं क्यों मिटा रहा हूँ।
पेड़ नहीं लगाऊॅंगा तो छाॅंव कहाँ से पाऊँगा।
पेड़ कटते रहे तो हरियाली कहाँ से लाऊँगा।।
प्रकृति से छेड़छाड़ मत करो वो सुअवसर देती है।
वरना आपदा महामारी न संभलने की अवसर देती है।।
पौधा सदा लगाइए, प्रकृति की पहचान।
पर्यावरण संभालते, नेक भले इंसान।।
लक्ष्मण वैष्णव
कोरबा छत्तीसगढ़