(राधेश्यामी छंद) कुरूक्षेत्र
(राधेश्यामी छंद)
कुरूक्षेत्र
दिख रही भूमि कुरूक्षेत्र है,
दोनो सेना से सजा हुआ।
यह काल युद्धारंभ का है,
रण में शंखनाद बजा हुआ॥
पाण्डव दुविधाग्रस्त हुए हैं,
परिजन आयुध धरे हुए है।
दिखते शत्रु दल में अपने,
भ्राता अनुचर खड़े हुए है॥
अर्जुन उवाच
“है गुरुवर किए धनुष धारण,
सम्मुख पितामह शत्रु दल में।
कुछ भूमि का खण्ड ही अब यह,
है अलग किया सबको पल में॥
व्याकुल मन है कुरूक्षेत्र में,
परिजन पर प्रहार हो कैसै।
केशव मार्ग दिखाओ कोई,
निज का तिरस्कार हो कैसे॥२॥”
केशव उवाच
“दुविधा त्याग गाण्डिव उठाओ,
यह धर्म युद्ध है पार्थ सुनो।
मत सोंचो सामने कैन है,
यह पुण्य मार्ग बस इसे चुनो ॥
हो विजयी तो यस पाओगे,
अनुचर होगा यह जग सारा।
होगा वरण यदि मृत्यु का तो,
पालन होगा धर्म तुम्हारा।।
गीता का उपदेश सुनो तुम,
है यह कर्म धनंजय प्यारे।
है धर्म सत्य यह जग मिथ्या,
हो अतिप्रिय तुम सखा हमारे॥
वह कर्म करो जो कहता हूँ,
अब से यह धर्म तुम्हारा है।
गाण्डिव उठा युद्ध करना है,
कहना यह पार्थ हमारा है॥
सुन ज्ञान गंग की धारा को,
फाल्गुनी मोह का त्याग किए।
मन की दुविधा मिट गई सब,
तब धर गाण्डिव टंकार दिए॥
कर में आयुध धारण कर वे,
रण में घोर शंखनाद किए।
गुरु और पितामह के सम्मुख,
वाणों से तब संवाद किए॥
दुर्गादत्त मिश्र ‘बाबा’
भोरे गोपालगंज बिहार