आनंद वही है!जो पारलौकिक है।
-आनंद वही है!जो पारलौकिक है।
– मृत्यु लोक में सांसें चलतीं है! सत्य लोक में समाधि।
दोहा:- माटी मा सब होत है, माटी में मिल जाती।
माटी माटी खां रहा, माटी जहां दिखात।।
:- वर्षा ऋतु दादुर बोलय,कोयल बोल बसंत।
लवकेश हरि नाम बोल,जब तक देह न अंत।।
:- लवकेश जग अंधेरा,लागत मोहे तीर।
राम केवल प्रकाश है,पावहि सच्चा फकीर।
:- लवकेश जीवन न चिंता, चिंता मिलन परमेश।
मालिक राह देख रहा,खड़ा दूर परदेश।।
:-सांस नाता जीवन से,जीवन नाता राम।
जीवन नाता राम भा,पूर्ण जगत सब काम।।
:-मिलन हरि से हो जाये,मिल जायें हरि मीत।
नयन जहां जहां जाये,मिलत सबही फजीत।।
:-हरि तुझे न भूल पाऊं,दो ऐसा वरदान।
हर सांस तू ध्यान रहें,जब तक तन में प्रान।।
:-तन से भारी कील है, जानूं मैं अवकात।
कील नीर डूब जाये,तन ऊपर उतरात।।
:-मूरख निशानी एक है,करत बैठ बकवास।
अंत क्षण पछतायेंगे,पावहि यमपुर वास।।
:-प्रकाश ही तो राम है,जह जह जाये आंख।
बाकी जग जो दिखत है,माया रूपी राख।।
:-भवानी शंकर बंदवु,जापौ तुम्हरो नाम।
जनम दिया तो धन्य करो,सुफल करो सब काम।
:-जिन्दा मरता एक बार,मुरदा मरे हजार।
हरि ध्यान में डूब गया, जनम मरन से पार।।
:- पावस रजनी ज्योति में,नाचै मरत पतंग।
मानव माया तिमिर में नाचै होये भंग।।
:-येहि जग का प्रेम करूं,जाना इक दिन छोड़।
प्रेम करूं मैं राम से,भव बंधन दे तोड़।।
:-माटी नर तन शून्य है,राम जगत प्रभु अनंत।
शून्य मान जेहि जानत, मरण लोक सो संत।।
:-झूठी इस दुनिया में,मजा लेत हैं खूब।
राम नाम सो याद नहिं,भोगत है भरपूर।।
पंडित लवकेश तिवारी कुशभवनपुरी
युवा कवि एवं गीतकार (भक्ति रस)