दोहे
दोहे
(१)
अनपढ़ के सर ताज है,ज्ञानी छीले घास।
कलयुग की लीला अजब,भूप बन गए दास।।
(२)
पढ़े- लिखे का है नहीं, दुनिया में अब मोल।
कोयल चुप बैठीं सभी,कौए बोलें बोल।।
(३)
माला लेकर हाथ में, जपें राम का नाम।
भले मनुज के भेष में, करें घिनौने काम।।
(४)
भाई से भाई लड़े,करे बुरा व्यवहार।
बोलो फिर होगा भला, कैसे जीवन पार।।
(५)
धन का लोभी हो गया,यह सारा संसार।
निर्धन का होगा यहां, कैसे बेड़ा पार।।
(६)
मित्र बन्धु सब छोड़ कर, चले शहर की ओर।
माया लगी न हाथ कुछ, बचा न कोई ठौर।।
(७)
निर्धन पर करते रहे, हर दिन अत्याचार।
अंत समय खुद रो दिए,यम की खाकर मार।।
(८)
सत्य धर्म की राह पर, चले नहीं इन्सान।
सच के पथ पर जो चले,बनता वही महान।।
(९)
धन-दौलत घरबार सब, यहीं पड़ा रह जाय।
गैरों का धन लूट क्यों,कोठी रहा बनाय।।
(१०)
राम भजन करते रहो, होंगे पूरण काम।
राम नाम नर जो भजे,होता जग में नाम।।
राम जी तिवारी “राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)