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बालिका शिक्षा

बालिका शिक्षा

हम जब भी विकास की सोचेंगे,चहुंमूर्खी,राष्ट्रीय,राज्यीय या प्रान्तीय या अन्तरराष्ट्रीय,बालिका के बिना यह नामुमकिन है।चूंकि आज की बालिका कल की देश का कर्णधार,सूत्रधार होगी।उसका जज़्बात,प्रेरणा,मेहनत,लगन,देशभक्ति देखते ही बनता है।आज वह अबला से सबला तक की सफर तय कर चुकी है।नारी तेरी यही कहानी,आंचल में नीर और आंखों में पानी,महज किम्बदंती सा प्रतीत होता है।

पर यह भी सत्यपरक है कि यह बालिका शिक्षा से ही संभव है।चूंकि साक्षरता का मिशन बिना,चिंतन,मनन,क्रियान्वयन संभव नहीं है।सो बालिका शिक्षा का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है।प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तरीय अध्ययन में बालिका सुमार है।यहां एक दृष्टान्त काफी है,इससे प्रमाणित करने के लिए। जैसे कि भारत की प्रथम नागरिक,महामहिम द्रोपदी मूर्मू जी हैं।वह अध्ययन एवं अध्यापन दोनों में महारत हैं।उनका शिक्षा उन्हें कुशल नेतृत्व के धनी बनाया है।इतिहास में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है।

बाल्यकाल से वह शिक्षा के प्रति तत्पर एवं मुखर रहीं हैं।जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखने के बाबजूद हिम्मत न हारा।अपना आपा नहीं खोया।और सुसमय में उन्हें उनका मेहनत का फल मिल गया,देश का बागडोर संभालने का।वे बचपन से बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहीं हैं।बाह्यरूप से नहीं बल्कि अन्त्ररूप से वह सुशिक्षित एवं राजनीतिक रहीं हैं।जिंदगी के कठिन परिस्थितिजन्य समस्या को पास से देखा है।और उससे उभरने की भरसक प्रयास भी किया है।इसमें उनकी तनया को मुख्य श्रेय जाता है,निःसंदेह। सो आजादी के पहले और बाद भी बालिका शिक्षा का उपयोगिता,महत्व,एवं नितांत आवश्यकता को नाकारा नहीं जा सकता।यह एक चिर पूरातन,नित्य नूतन,चलायमान प्रक्रिया है,न अतिशयोक्तिपूर्ण कथन।।

श्रीमती अरुणा अग्रवाल
लोरमी, जिला मुंगेली, छ, ग,
संपर्क: 9981830087,

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