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समर भूमि

समर भूमि
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समर भूमि में
पीठ दिखाकर,
बंचा लिया
वह प्राण कैसा ?

धन का नाश
करता पाप,
पिघलाता जैसे
बर्फ को ताप।
जा सके ना
साथ जो,
उस धन का
अभिमान कैसा ?

अपढ़ अशिक्षित
दर दर भटकें,
अपमान सहें और
आंसू गटकें।
काम ना आ
सके जो किसी के,
वह पांडित्य कैसी
वह ज्ञान कैसा ?

भौतिकता के
सांचे में ढला,
मनुष्य आज
यंत्र हो चला।
सूखे हृदय में
रस ना भर दे,
वह लय कैसी
वह तान कैसा ?

लाखों नागरिक
भूखे सोएं,
दूध की खातिर
बच्चे रोएं।
ऐसे राज्य के
संप्रभु को,
सुख कैसी
आराम कैसा ?

अनिल सिंह बच्चू

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