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विषमताओं से द्वंद्व करता उल्लेखनीय काव्य-संग्रह : ‘मुरारी की चौपाल’

(पुस्तक-समीक्षा)

विषमताओं से द्वंद्व करता उल्लेखनीय काव्य-संग्रह : ‘मुरारी की चौपाल

समाज में व्याप्त विषमताओं को उनके प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष समाधान सहित कम शब्दों में भी सुंदरता से प्रस्तुत कर देना एक काव्य-कृति को उल्लेखनीय बनाता ही है। होनहार रचनाकार श्री अतुल कुमार शर्मा की सशक्त लेखनी से साकार हुए काव्य-संग्रह ‘मुरारी की चौपाल’ को भी इसी महत्वपूर्ण श्रृंखला की एक कड़ी कहा जा सकता है। कुल 54 छंदमुक्त कविता रूपी मनकों से सजी यह काव्य-माला, न केवल पाठक को अंत तक बाॅंधे रखने में सक्षम है अपितु, उसे स्वयं के भीतर झाॅंकने तथा स्वयं को आंकने की भी राह दिखाती है। उदाहरण के लिए, सामाजिक मेलजोल की पुरानी परम्परा की ओर लौटने का आह्वान करती संग्रह की शीर्षक रचना ‘मुरारी की चौपाल’, जिसका इसी संदर्भ में अवलोकन किया जा सकता है। गहन चिंतन-मनन हेतु प्रेरित करती इस रचना की कुछ पंक्तियाॅं देखें –
“चौपाल’ शब्द सुनकर चौंक पड़ेगा हर बालक अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल का, उसे नहीं पता क्या होती है चौपाल ?” इसी सशक्त रचना में कवि आगे कह रहा है – “अक्सर ऐसी हुआ करती थीं चौपालें, जहाॅं बैठते थे लोग हर उम्र के फासले मिटा कर…..”।
आपाधापी व मतलब से भरे वर्तमान की इस अंधी दौड़ में आज किसी को किसी के दुःख से मतलब निकल आए तो यह एक आश्चर्य ही कहा जायेगा। इसी कड़वे सत्य को बहुत ही सहज रूप में व्यक्त करती है कृति की एक अन्य रचना ”समय नहीं मिलता”, जिसकी कुछ पंक्तियाॅं ही सब कुछ कह देने में सक्षम हैं, पंक्तियाॅं बोल रही हैं –
“आज किसी के पास समय ही नहीं जो किसी का साथी बन सके, किसी को बॅंधा सके ढाढस या ऑंसू थमा सके।”
विभिन्न सामाजिक विसंगतियों एवं वितृष्णाओं को छंदों के बंधन से परे रहकर व्यक्त करता यह संग्रह जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, तथाकथित आधुनिक एवं प्रगतिशील समाज की तस्वीर पर जमी धूल भी साफ होती चलती है। कृति की आगामी रचनाएं ”गहरा दुश्मन”, ”कानून के पुतले”, ”कोल्हू का बैल”, ”तू फिर हार गई”, ”नया आशियाना”, “चोंच भर पानी”, ”अधूरे सपने” इत्यादि बिल्कुल स्पष्ट कर रही हैं कि भले ही वर्तमान समाज स्वयं को प्रगतिशील कहे परन्तु, आज भी पारिवारिक एवं सामाजिक दोनों स्तरों पर इन विसंगतियों के बंधन से मुक्त नहीं हुआ है। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह भी है कि एक अदृश्य लय को स्वयं में सुंदरता से समेटे इन छंद मुक्त रचनाओं का कथ्य एवं शिल्प, किसी भी प्रकार की क्लिष्टता से रहित रहकर यह बता रहा है कि रचनाकार की लेखनी स्वयं के लिए नहीं अपितु समाज के हितार्थ ही चली है, जिसके परिप्रेक्ष्य में ये सभी रचनाऍं उसे समस्याओं पर गहराई से सोचने एवं उनके सार्थक हल तलाशने को प्रेरित करती हैं। अर्थात् यह कहा जा सकता है कि रचनाकार ने मात्र कल्पना के वशीभूत न रहकर, समस्याओं के मूल में जाते हुए, उन्हें सहज व सरल शब्दों में ढाला है। कुल मिलाकर, ”पिता का पसीना” शीर्षक रचना के साथ समापन पर पहुॅंचता हुआ यह उल्लेखनीय काव्य-संग्रह यह भी स्पष्ट कर देता है कि दैनिक जीवन की जिन विषमताओं को लेकर आम जनमानस इधर-उधर बदहवास दौड़ता रहता है, उससे सार्थक संघर्ष के लिए आवश्यक आशा की किरण भी स्वयं उसी के भीतर ही छिपी हुई है, जिसके आलोक में इन विषम परिस्थितियों के हल उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह रचना भी आधुनिक समाज के खोखलेपन को सामने रखती हुई उसके लिये कड़े प्रश्न छोड़ जाती है, पंक्तियाॅं देखें –
“चौबीस घंटे जी-तोड़ मेहनत करने का किसी तरह निभा पाए पिता धर्म, माना पाए बच्चों के बर्थ-डे रंग-बिरंगे गुब्बारे के बीच अपनी ज़िंदगी बदरंग करके, भला जरूरी है क्या? केक काटा जाए? मोमबत्तियाॅं बुझाई जाऍं? गुब्बारे फोड़े जाऍं?….”
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि सहज-सरल-सुगठित भाषा-शैली तथा आकर्षक साज-सज्जा एवं छपाई के साथ प्रकाश में आया छंदमुक्त रचनाओं का यह संग्रह, चिंतन-मनन की दृष्टि से अभिनंदन एवं काव्य-जगत् की महत्वपूर्ण कृतियों में गिने जाने के योग्य है जिसके लिए रचनाकार एवं प्रकाशन संस्थान दोनों को बारम्बार साधुवाद।

कृति का नाम –
‘मुरारी की चौपाल’,
रचनाकार- अतुल कुमार शर्मा, सम्भल।
समीक्षक-राजीव प्रखर, मुरादाबाद।

संस्करण-2023,
प्रकाशक- आस्था प्रकाशन गृह, जालंधर-पंजाब

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