आलेख युग पुरुष महात्मा गांधी
आलेख
युग पुरुष महात्मा गांधी
” आने वाली पीढ़ियां शायद मुश्किल से ही यह विश्वास कर सकेंगी कि गांधीजी जैसा हाड़ – मांस का पुतला कभी इस धरती पर हुआ होगा ?”
अल्बर्ट आइंस्टीन का उपर्युक्त कथन आज के इस अंतकवादी , बर्बर और जघन्य अमानवीय कृत्यों को देखकर सचमुच बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देता है। गांधी मात्र हाड़ – मांस के व्यक्ति ही नहीं थे , बल्कि वे संपूर्ण एक विचारात्मक आंदोलन थे, सामयिक दर्शन थे और दुरंदेशी युग पुरुष थे। महात्मा बुद्ध के बाद शांति के वे ऐसे मसीहा थे, जिन्होंने सत्य – अहिंसा के व्यापक महत्व को समझा और अपने में आत्मसात् कर क्रियान्वित भी किया, जैसा वे कहते- करके भी दिखाते थे, वे समग्र मानवता के कल्याण और सर्वोदय के लिए जीवन भर प्राणपण से जुटे रहे।
गांधी विश्व के युग महापुरुष में से थे, जिन्हे किसी एक भौगोलिक परिधि के सीमित दायरे में अथवा किसी जाति विशेष ,संप्रदाय या परंपरा के अंतर्गत रखे जाने का विचार भी लाना असंगत होगा,वे संपूर्ण मानव- कल्याण के लिए जन्मे थे और सभी संकीर्णता और बंधनों से परे थे, यदि व्यवहारिक के तौर पर भी हम उनकी नीति और कार्य प्रणाली पर गौर करें ,तो उन्हे हम ऐसे किसी फकीर , साधु या फरिश्ते के रूप में नही पाएंगे ,जो कमंडल थामे देश – विदेश में परिक्रमा लगता हुआ विश्व शांति की दुहाई दे रहा हो,गांधी जी ने आम जनता को करीब से देखा और उसकी भावनाओं को समझा- परखा फिर पश्चिमी देशों की औधोगोकी प्रगति ,परस्पर हथियारों की प्रतिस्पर्धा एवं गुटबंदी तथा साम्राज्यवादी हविस को पहचाना ,तब कहीं जाकर विश्व शांति का आह्वान किया।
आइए हम उनकी जयंती पर उन्हें शत – शत नमन करें।
आशीष अम्बर
जिला :- दरभंगा
बिहार