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सन्त श्रीकेशवजी दण्डौती

सन्त श्रीकेशवजी दण्डौती

ब्रजमण्डल के भक्तों में जिनको अग्रगण्य भक्त कहते हैं
श्रीगोवर्धन जी की परिक्रमा दण्डौती निशदिन करते हैं

परिक्रमा करने के कारण केशव जी दण्डौती नाम पड़ा
एक बार इक हट्टा-कट्टा साधु आपके सम्मुख आन खड़ा
गोवर्धन परिक्रमा के समय श्रीनारायण को भजते हैं
श्रीगोवर्धन जी की परिक्रमा दण्डौती निशदिन करते हैं

निशदिन श्रीकृष्ण का भजन गोवर्धन परिक्रमा था बस काम
परिक्रमा जब तक पूरी न होती करते न बिल्कुल आराम
मस्त मगन श्रीकृष्ण भक्ति में सदा गोविंद नाम रटते हैं
श्रीगोवर्धन जी की परिक्रमा दण्डौती निशदिन करते हैं

एक बार गुण- कीर्तन करते परिक्रमा रहे थे लगाए
साधु वेश धारण कर स्वयं श्रीठाकुर जी वहां पर आए
इनसे बोले संग गोवर्धन परिक्रमा करने चलते हैं
श्रीगोवर्धन जी की परिक्रमा दण्डौती निशदिन करते हैं

साधु विनय वचन सुनकर श्री केशवजी दण्डौती मान गए
परिक्रमा करते प्रभु ने सरकाया दण्डौती जी जान गए
नाराज़ होकर कहा भक्त भगवान को कभी न छलते हैं
श्रीगोवर्धन जी की परिक्रमा दण्डौती निशदिन करते हैं

साधु वेश में कौन हो बताओ और कहां से आए हो
भगवा चोला धार कर तन पर क्यों साधु वेश बनाए हो
मेरी परिक्रमा खण्डित करके क्या कान्हा से न डरते हैं
श्रीगोवर्धन जी की परिक्रमा दण्डौती निशदिन करते हैं

साधु होकर भी लगता आपकी बुद्धि में अधर्म समाया
ढोंगी बाबा प्रतीत होता हमपर न चले तेरी माया
साधु भी यदि करें कर्म बुरा कभी भव सागर न तरते हैं
श्रीगोवर्धन जी की परिक्रमा दण्डौती निशदिन करते हैं

केशवजी की बात सुन साधुरुपधारी भगवान बोले
स्वयं करता कर्म बुरा पहले निज अन्तर्मन को टटोले
अधर्म कार्य स्वयं करके कृष्ण का परम भक्त बनते हैं
श्रीगोवर्धन जी की परिक्रमा दण्डौती निशदिन करते हैं

अरे! तुम्हें ज्ञात है कि पृथ्वी को भूधर की पत्नी कहते हैं
रात्रि पहर में पराई स्त्री का आलिंगन करते रहते हैं
यह कितना घृणित कार्य है जो धरा पे औंधे पड़ते हैं
श्रीगोवर्धन जी की परिक्रमा दण्डौती निशदिन करते हैं

केशवजी ने साधु से कहा यह पृथ्वी हमारी माता है
अतः उनकी गोद में विचरना हमें दोष नजर न आता है
यह मुँहतोड़ उत्तर सुनकर श्रीबाँकेबिहारी हँसते हैं
श्रीगोवर्धन जी की परिक्रमा दण्डौती निशदिन करते हैं

प्रसन्न हो भगवान ने दण्डौती को दिव्य रूप दिखलाया
दण्डौती के ऊपर कृष्ण ने अपना अगाध प्रेम बरसाया
केशवजी दण्डौती के नयनों की श्रीहरि प्यास हरते हैं
श्रीगोवर्धन जी की परिक्रमा दण्डौती निशदिन करते हैं

यदा- कदा भगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं
भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर मनवांछित फल देते हैं
सच्चे मन से जो हरि को ध्याता हरि उसके हृदय बसते हैं
श्रीगोवर्धन जी की परिक्रमा दण्डौती निशदिन करते हैं

राम जी तिवारी “राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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