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बिटिया का प्रश्न

बिटिया का प्रश्न

पूछ रही बिटिया रानी आज़ादी का अर्थ समाज से,
है किसी के पास इतनी सामर्थ्य तो दे जवाब उसे।

उसके पैदा होते ही घर की रौनक क्यों बदल जाती है!
माँ लगा सीने से उसे किन ख़यालों में खो जाती है?

पैदा होते ही बिटिया की सुरक्षा की चिंता क्यों सताती है,
गोद में लेते ही दहेज़ जुटाने की फ़िक्र क्यों हो जाती है?

बेटी के पैदा होने पर आवाज़ धीमी क्यों हो जाती है,
खुशी के माहौल पर उदासी की चादर क्यों लिपट जाती है?

आज़ाद देश में बिटिया की आज़ादी  आख़िर कहाँ खो जाती है,
पूछ रही बिटिया उसकी ख़ुशियाँ सिसकियों में क्यों बदल जाती हैं?

कभी दहेज़ तो कभी इज्ज़त के नाम पर क्यों वे जलाई जाती हैं,

दें जवाब!  आख़िर कब तक देंगी वे अपनी ख़ुशियों की आहुतियाँ?

जानती है बिटिया, नहीं है कोई जवाब गूँगे बहरे समाज के पास,
कमर कस,लक्ष्य साध अब स्वयं जगानी होगी अपनी ख़ुशियों की आस

भर हुंकार शक्ति का ,समाज को जगाना होगा,
हे मानव!सोच ज़रा बिन बेटी के घर तेरा कैसा होगा?

सोचें !  गर न होंगी  बेटियाँ तो सृष्टि चक्र कैसे चलेगा?
करना होगा उपाय  अब स्वयं माँ को जागृत होना होगा।

गर्भ में ही सन्तान को संस्कारों से पोषित करना होगा,
पा संस्कार देवत्व के फिर न कोई कुसंस्कारी  पैदा होगा।

बचपन से ही पोषित संस्कारों से फिर  न कोई राह भटकेगा,
ऐसे सभ्य समाज में तब ,न  बेटियों की असुरक्षा का भय होगा।

देनी होगी तालीम बेटे को ऐसी कि शादी के लिये न वह बिकेगा,
बन स्वाभिमानी स्वयं वह दहेजरूपी नागिन का बहिष्कार करेगा।

ऐसे समाज का निर्माण  हमें करना होगा,
नारी को ही नारायणी  बनना होगा।।

हाँ!नारी को ही नारायणी बनना होगा ,
तभी इस धरा पर बिटिया को सम्मान सङ्ग
जीने का अधिकार मिलेगा।

माधुरी भट्ट देहरादून

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