हमारी मातृभाषा हिंदी को___किसी भी तरह की वैशाखी की जरुरत नहीं है
हमारी मातृभाषा हिंदी को___किसी भी तरह की वैशाखी की जरुरत नहीं है
( निज भाषा की उन्नति अहै, सब उन्नति के मूल )
जी, हां! जब अपनी भाषा में तोते भी राम__राम रटतें हैं, तो फिर हम क्यों ?दूसरों की चिपकें हैं क्यों?सत्यं शिवम् सुन्दरं हमारी मातृभाषा हिन्दी की महत्ता, मर्यादा की पराकाष्ठा है. मातृभाषा हिन्दी को उसके अपने वास्तविक स्थान दिलाने हमारी साहसिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता है।
हजारों वर्षों की गुलामी हमें अपने स्व की भावना से बहुत दूर करने का हर सम्भव कोशिश किया विदेशियों ने, हां यह अलग बात है कि अंग्रेजी हुकूमत के लार्ड मैकाले ने हमारी मातृभाषा हिंदी सहित अनेक क्षेत्रों में भारतीयता के मानक को तोड़ने के लिए जी जान लगा दिये फिर भी असफल रहे, हां इससे भी नकारा नहीं जा सकता कि तत्कालीन नेताओं, सुविधापरस्त लोगों नेअपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का कार्य करते हुए, अपनी माता हमारी मातृभाषा हिंदी को जरुर कुछ हद नीचा दिखाने का काम किये,इससे नकारा नहीं जा सकता.
देवभाषा संस्कृत समस्त भाषाओं की जननी मानी जाती है, आज यह भाषा अछूत के रुप में देखी जाती है,जबकि वास्तविकता है कि समस्त धार्मिक पुस्तके_ यथा__समस्त ग्रंथ__वेद,पुराण, शास्त्र उपनिषद.स्मृति, रामायण,गीता, सभी मंत्र सहित अनेक ऋचाएं, समस्त आर्षवाणी सहित अनेक पौराणिक ग्रंथ संस्कृत में ही विद्धमान है. इसको भी मटियामेट करने का कार्य अंगरेजों द्वारा करन एवं कराने में अपने ही लोगों द्वारा कराया गया, घर कोआग लग ग ई घर के चिराग से.
देश के आजाद होने के पश्चात यह सभी को भान था कि अब हमारी भारतवर्ष की मातृभाषा एवं राजभाषा की गद्दी पर आसीन होगी, पर यह क्या, अंग्रेज़ों के धमक के आगे तत्कालीन नेता _और मंत्री संविधान की दुहाई देते_देते, पन्द्रह वर्षों के अन्तराल देते आज तक हिन्दी अंग्रेजी भाषा की नौकरानी बनकर धुट_धुट रो रही है और हम अंगरेजियत में सिर सेपैर तक मदहोश होकर उन्हीं का गुण गान करते__करते नहीं थकते हैं
कहा जाता हैजैसा अन्न वैसा ही मन, ठीक इसी तरह जैसीभाषा वैसी ही रहन _सहन.
वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दया है कि जैसी भाषा वैसी ही संस्कृति.
प्राचीन काल से लेकर आज तक एक से बढकर एक साहित्यकार, भारतवर्ष की पावन घरती जन्म लेकर मां भारती के आंचल एक से बढकर एक रचनाओं का पुष्प डाल चुके हैं ,जो हमारी और हमारे देश की धरोहर है.
महर्षि वाल्मीकि, तुलसीदास, कालिदास, सूरदास, आर्यभट्ट, कबीर,मुंशी प्रेमचंद,भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी जिन्होंने अपनी सारी जिन्दगी हिन्दी के लिए न्योछावर, कर दिये. बंकिम चन्द चट्टोपाध्याय, मीराबाई, बाबू देवकीनन्दन खत्री, तिरुवल्वर, नरसी मेहता, बेनीपुरी जी रामधारी सिंह दिनकर, जैसे अनेक दिग्गज साहित्यकार बन्धुओं ने मां भारती की मान रखी.
यह भी उतना ही ध्रुव सत्य हैकि मध्य काल में अगर गोस्वामी तुलसीदास जी नहीं होते हमारी भाषाऔर संस्कृति रसातल में चली गयी होती.
स्वामी विवेकानंद जी ने एवं स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने भी हिन्दी के लिए जी जान लगा दिये थे.
एक उदाहरण यहां लिखना समीचीन है____
टर्की के सर्वेसर्वा मुस्तफा कमाल पाशा ने अपने सभी मंत्रियो एवं अधिकारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाकर बिना किसी लाग लपेट के सभी से पूछा हमारे देश में तुर्की भषा कब से राजभाषा मातृभाषा हो जायेगी__सभा में कुछ देर सन्नाटा छाये रहा तब एक अधिकारी ने कहा लगभग एक _दोसाल, सभी ने इसी लहजे जवाब दिये,सबकी बात सुनने के पश्चात मुस्तफा कमाल पाशा ने बडे ही आत्मवाश्वास से लबरेज हो कर हूंकार, __ बस आज
की रात की देर कल सुबह से टर्की में तुर्की राज एवंमातृ भाषा हो जायेगी ,और यही हुआ.
अगर ऐसी इच्छा शक्ति हमारे देश के कर्णधारों,नेताओं, ओर भारत वर्ष के नागरिकों हो जाय, हमारी मात्भषा एवं राजभाषा हिंदी होने में कोई देर नहीं हो पायेगी..
केवल हिन्दी दिवस मना लेने से, हिन्दी__हिन्दी कहकर रो़ने से और माथा पीटने से कुछ नहीं ,हम सभी को अपने__अपने स्तर से लगना होगा, तभी अपेक्षित परिणाम की आशा कर सकते हैं.
अगर ऐसा नहीं हो पायेगा, तो सारी बातें ढाक के तीन पत्ते की तरह हो जायेगी.
अनेक भारतीय विद्वानों हिन्दी की उन्नति के लिए बहुत__बहुत कुछ किये, अब हम सभी की बारी है………..
अपनी थाती को बचाना हम सभी का नैतिक कर्तव्य है.
नहीं बचायेगें अपनी थाती,
रोयेगा भविष्य पीटकर छाती
ओमप्रकाश केसरी पवननन्दन
सलाहकार
प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा
बक्सर बिहार