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पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा

“अनिर्वचनीय सौंदर्य के दर्शन कराती सौंदर्य लोक”

नाम – सौंदर्य लोक
लेखिका- डॉ. स्नेहलता श्रीवास्तव प्रकाशक – यूनिक फ़ील क्रिएशंस ISBN -978-93-5749-104-4
आवरण- अर्चित श्रीवास्तव
मूल्य – 250 रुपए
पृष्ठ संख्या- 194

डॉ.स्नेहलता श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित पुस्तक *सौंदर्य लोक* एक अनिर्वचनीय सौंदर्य के दर्शन कराती, संस्मरण के रूप में लिखे यात्रा वृतांतों की पुस्तक है।

दिसंबर 2022 में इसका प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ। पुस्तक का आवरण पृष्ठ प्रकृति के मनोरम दृश्य का दर्शन कराते हुए एक आत्मिक शांति का एहसास कराता है।
पुस्तक में दो पड़ाव महसूस होते हैं। एक तो अंडमान की यात्रा के संस्मरण जिन्हें मैंने जब पढ़ना शुरू किया तो बीच में छोड़ना मुश्किल हो गया, समाप्त करके ही रुक पाई। दूसरे भाग में मैसूर और बेंगलुरु के आसपास के पर्यटन स्थलों के बारे में बहुत ही जीवंत जानकारी दी गई है।
संस्मरण पढ़ते हुए भ्रम होता है मन की कलम से भावों के रंगों में डूबे शब्दों के चित्र हैं या किसी कुशल चित्रकार द्वारा हृदय पटल पर स्थाई रूप से अंकित कर दिए जाने वाले तैल चित्र।

लेखिका ने सपरिवार अपनी यात्रा बेंगलुरु से किस तरह प्रारंभ की और वापस बेंगलुरु तक आने में यात्रा के बारे में जानने योग्य हर आवश्यक बात, वाहनों के बारे में, रिजर्वेशन के बारे में, किसी स्थान पर जाने के लिए लगने वाली सभी औपचारिकताओं के बारे में, गाइड के बारे में, संभावित संकटों और चुनौतियों के बारे में बहुत स्पष्ट रूप से बताया है, निश्चित रूप से यह जानकारी अत्यंत उपयोगी है।

अंडमान पहुंचते ही सबसे पहले पोर्ट ब्लेयर पहुंचना और सबसे पहले सेल्यूलर जेल के दर्शन करना लेखिका के देश प्रेम को दर्शाता है।
लेखिका के शब्दों में ही देखिए-
*स्वतंत्रता सेनानियों ने कितने मर्मांतक अत्याचार और वेदना सही है जानकर हमारे रोंगटे खड़े हो रहे थे, आत्मा अकुला रही थी, पैर काँप रहे थे। अमर सेनानियों की डायरी के पन्ने मानो बोल रहे थे। लगने लगा कि हथौड़े की, कोल्हू की, चाबुक की क्रूर आवाजें आ रही हैं, वीर देश भक्तों के पावन श्वेद की गंध हवा में महकने लगी*।
उस पूरी इमारत के हर स्थान के बारे में जानकारी आप किताब से पा सकते हैं और अपनी आजादी के मूल्य के मूल्यांकन की कल्पना की ओर बढ़ सकते हैं।

सौंदर्य और रोमांच का गीत सा था स्वराज द्वीप या हैवलॉक। राधा नगर बीच,प्रेम और विश्वास में प्रतीक्षारत दो सुकुमारियों राधा रानी और परी राजकुमारी की अनंत प्रतीक्षा की कथा से जुड़ा, शुभ्र, उज्ज्वल और कांतिमान बालू के वैभव से परिपूर्ण यह समुद्र तट स्वयं भी प्रतीक्षा करता दिखाई देता है।

स्नेहलता जी ने सूर्योदय और सूर्यास्त के अनोखे वर्णन किये। काला पत्थर समुद्र तट पर सूर्योदय के दर्शन करते हुए वे कविता में कह उठती हैं-

शाम को जो
थका हुआ सूरज
लुढ़क गया था
सागर की गोद में
वही अरुणिम
एकदम ताज़गी भरा
निकल रहा है
सागर की कोख से
गद्य के बीच में पुस्तक में इस तरह से कविताओं का आना ऐसा जान पड़ता है किसी बहुत सुंदर गुलदस्ते में कुछ और भी खूबसूरत फूल खोंस दिए गए हों।
आपने पोते के मन में बाल सुलभ जिज्ञासा जगाते हुए सागर से संवाद करने का अनोखा तरीका ईजाद किया एवं बालक को परोक्ष रूप से बहुत सारी बातें सिखा गईं।

एलिफेंट बीच, बरतांग द्वीप, माया बंदर, डिगलीपुर,रंगत कि वह विचित्रताओं भरी रात।
बरतांग जाते हुए रास्ते में जारबा जनजाति के हिंसक स्वभाव के लोगों के बीच से किस तरह कानवाई के साथ वह रास्ता पार करना रहता है। लेखिका जहां भी कोई नई बात बताती हैं वह उस विषय पर पूरी शोध के बाद अपनी बात प्रस्तुत करती हैं, हमें इस जनजाति की बहुत सी जानकारी पुख्ता रूप से प्राप्त होती है।
रंगत की रात की घटना तो एक जिज्ञासु मन की साहसिक यात्रा है। धुप्प अंधेरे में लकड़ी के फट्टों से बने दो किलोमीटर लंबे पुल पर एक दूसरे का हाथ पकड़े टटोलते हुए लंबा पुल पार करना और वहां जाकर कछुआ के अंडों के दर्शन करना कि किस तरह कछुए तट पर अंडे देकर छुपा कर चले जाते हैं और वह अंडे संरक्षण के लिए बटोर लिए जाते हैं।
इस पूरी अंडमान यात्रा में लेखिका ने समुद्र के रूप का वर्णन इतने अलग-अलग कोणों से किया है कि पाठक सम्मोहित हो जाते हैं, समुद्र की लीला में खो जाते हैं । आप लेखिका के ही शब्दों में पढ़ेंगे तो आपकी आत्मा सागर के अनंत सौंदर्य पान से तृप्त हो जाएगी।

प्रत्येक प्रहर में देखी मैंने,
मोहक छबियाँ सागर की

इसके बाद बेंगलुरु के अभयारण्य और मैसूर तथा उसके आसपास के सौंदर्य, कबिनी या कपिला नदी के तट, बैलगाड़ी की यात्रा, मोम मूर्तिकला, रेत मूर्ति कला, सभी कलाकृतियां सौंदर्य की जीती जागती प्रतिमूर्तियों का जीवंत चित्रण। शुकवन, एवं बोनसाई उद्यान में भारतीय संस्कृति के दर्शन।
बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान बेंगलुरु में वनराज एवं अनेक
बड़े विडालों से मुलाकात। विभिन्न समुद्र तटों पर विचरण करते हुए अपने स्थान को लौटते लेखिका अपनी यात्रा के संदेश रूप में कहती हैं-

बीते समय की छोड़ो बातें,
नैराश्य का केंचुल उतारो
अनंत संभावनामय आगत उज्जवलता का वरण करो।

पुस्तक में भाव पक्ष बहुत प्रबल है कलात्मक भावपूर्ण भाषा, सुंदर शैली, अभिधा के साथ-साथ लक्षणा, व्यंजना सभी शब्द शक्तियां, बीच-बीच में रेखाचित्रों के भी दर्शन होते हैं, कविताएं एवं बहुत सारे श्वेत-श्याम एवं बहुरंगे छायाचित्र पुस्तक को विशिष्टता एवं संपूर्णता प्रदान करते हैं।

संस्मरण विधा में लिखित यह पुस्तक इस विधा के सभी आवश्यक तत्वों से भरपूर एक आदर्श यात्रा संस्मरण संग्रह है ।

मेरा ऐसा मानना है इस पुस्तक को पढ़कर जो लोग इन स्थानों का भ्रमण कर चुके हैं उन्हें नई दृष्टि प्राप्त होगी व जिन्होंने भ्रमण नहीं किया है, वे जाने के लिए बहुत अधिक उत्कंठित हो जाएंगे और जो नहीं जा सकते, वे भी इस पुस्तक को पढ़कर लगभग वैसी ही अनुभूतियाँ प्राप्त कर सकते हैं मानो खुद उस स्थान पर घूम कर आए हों। इसलिए इसे अवश्य पढ़ें।

पाठकों के लिए यह पुस्तक सिर्फ पठनीय ही नहीं संग्रहणीय भी बन पड़ा है।

डॉ जया पाठक
पूर्व प्राध्यापक
अध्यक्ष हिन्दी साहित्य भारती झाबुआ
मध्यप्रदेश।

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