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प्रकृति के संदेश को समझें’ मानव सहित सभी जीवों को संरक्षित करें

प्रकृति के संदेश को समझें’ मानव सहित सभी जीवों को संरक्षित करें
हम मानव प्रकृति की सबसे बुद्धिमान इकाई हैं,इसलिए हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए,उसकी रक्षा करनी चाहिए। इंसान ही प्रकृति की एक ऐसी इकाई है,जिसने अन्य सभी प्रकृति की इकाईयों पर अपना अधिकार /आधिपत्य जमा रखा है । हमें गुमान था, कि हमारे बगैर पत्ता नहीं हिलेगा।किंतु कुछ वर्षों पूर्व में आई कोरोना महामारी ने हमारे गुमान के चिथड़े-चिथड़े,कर डाले।आदमी बेवश,सारे साधन होते हुये भी पैदल भागने को मजबूर,घर में कैद रहने को मजबूर,बिलकुल असहाय।मगर अफसोस, पूरी दुनियाँ के सभी इंसान आज प्रकृति की इन चुनौतियों (बेमौसम असामान्य वर्षा, अतिवृष्टि, सूखा, बाढ़ ,भूकंप, तूफान, प्रचंड गर्मी,सुनामी,अगणित बीमारियों ) के सामने लाचार हैं । हमें समझना चाहिए, कि कोई तो है , जिसके सामने हम लाचार हैं। प्रकृति हमें चुनौतियों के रूप में संदेश देती रहती है। हमें इन चुनौतियों को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए, और सबक लेना चाहिए।साथ ही विचार करना चाहिए, कि इन चुनौतियों के जरिए प्रकृति हमें क्या संदेश देना चाहती है ?इससे पहले भी प्रकृति हमें संदेश देती रही है। मगर हम स्वार्थी इंसान प्रकृति के संदेश को समझ नहीं पाते,और यदि समझ भी पाते हैं तो केवल अपनी जरूरतों को, लालच को पूरा करने में दिन रात लगे रहते हैं।
हमारे पूर्वज प्रकृति को “मां”का दर्ज़ा देते थे। उन्होंने हमें प्रकृति का सम्मान करने की शिक्षा दी थी,संस्कार भी डाले थे,वृक्षों,जलाशयों,नदियों के पूजा का विधान बनाया था। लेकिन हम अपने पूर्वजों के बताए रास्ते से हट गए,और अपने विवेक से खुदगर्ज होकर काम करने लगे।बिना सोचे हम आगे बढ़ते गए , विकास करते गए , हमें ठहरना चाहिए था और विचार करना चाहिए था , कि हम क्या करते जा रहे हैं? विकास के पीछे होने वाले विनाश के बारे में हमने नहीं सोचा ! अब असामान्य मौसम की घटनाएं एवं बीमारियां आम होती जा रही हैं। प्रकृति के इन संकटों के संदेश से अब समय आ गया है, कि हम थोड़ा ठहर कर विचार करें ? कि हम रास्ते से कहां भटक गए हैं ! और सही रास्ते पर कैसे लौट सकते हैं ?
प्रकृति हमें यह संदेश दे रही है , कि उसके सामने हम सब इंसान बराबर हैं । जाति, पंथ,संप्रदाय,धर्म ,क्षेत्र और अन्य किसी मानव निर्मित भेदभाव को प्रकृति नहीं मानती। उसकी निगाह में पूरी दुनियाँ एक ही परिवार है। भारतीय संस्कृति तो “वसुधैव कुटुम्बकम” की रही है,लेकिन सम्पूर्ण विश्व के लिए यह कथन आज के संदर्भ में जितना सार्थक है ,उतना पहले कभी नहीं रहा। हमें केवल इंसानों की ही नहीं , बल्कि पशु -पक्षी ,पेड़- पौधों,वनस्पतियों एवं जीव- जंतुओं की भी सुरक्षा करनी चाहिए।वर्तमान संकट हमें यह सिखाते है, कि हमें अपनी तरह ही दूसरों की भी चिंता करनी चाहिए। इन संकटों की घड़ी में प्रत्येक इंसान अपना योगदान दे सकता है।अपने उपलब्ध संसाधनों को साझा कर अपने पड़ोसियों की मदद कर सकता है।जरूरतमंदों की मदद कर सकता है। अपने देश की मदद कर सकता है।हमें प्रकृति की सभी इकाइयों की मदद करनी चाहिए।हमें चाहिए , कि हम सब मिलकर प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करें और जैव- विविधता का संवर्धन करें। प्रकृति के वैभव को बरक़रार रखें।
प्रकृति हमें यह याद दिलाना चाहती है , कि हम परस्पर विनम्रता,सहायता, समानता,सदभावना और निर्भरता के साथ -साथ प्रकृति की इकाइयों के साथ मिलकर ही जियें। हमें चाहिए कि हम अपनी ज़िंदगी के हर पल को, हर लमहे को प्रकृति के साथ मिलकर ख़ुशी के साथ जियें ,प्रकृति की व्यवस्था को बनाए रखें, धरती “मां” के अस्तित्व को बचाएं, प्रकृति के वैभव को बचाएं।इस बात को हमेशा स्मृति में रखें कि प्रकृति से हम हैं, न कि प्रकृति हमसे।
जोहार प्रकृति! जोहार धरती मां!

डॉ. ओ. पी. चौधरी
अवकाश प्राप्त प्रोफेसर एवं अध्यक्ष,मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पी जी कॉलेज वाराणसी।
मो:9515694679

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