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साक्षात्कार और संस्कार

साक्षात्कार और संस्कार
कहा जाता है कि बच्चों की प्रथम पाठ शाला परिवार है और प्रथम शिक्षिका माँ है।माँ की ममता एवं स्नेह और पिता का अनुशासन एवं संरक्षण बच्चे के समुचित विकास के लिए आवश्यक है।लेकिन बचपन में विषेषकर किशोरावस्था में बात – बात में मां बाप का टोकना हमें अखरता है। हम भीतर ही भीतर झल्लाते हैं कि कब इनके टोकने की आदत से हमारा पीछा छूटेगा।लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि उनके रोकने-टोकने से जो संस्कार हम ग्रहण कर रहे हैं,उनकी हमारे जीवन में क्या अहमियत है।वह कितने अनमोल हैं,यह समझ बाद में आती है।
काफी भाग-दौड़ के बाद ,मैं आज एक ऑफिस में साक्षात्कार देने पहुंचा।आज मेरा यह पहला इंटरव्यू था ,घर से निकलते हुए मैं  सोच रहा था,काश ! इंटरव्यू में आज कामयाब हो गया,तो अपने पुश्तैनी मकान को अलविदा कहकर यहीं शहर में ही मकान लेकर रहूँगा।मम्मी- पापा की रोज़-रोज की चिक -चिक,टोका-टाकी और मग़जमारी से छुटकारा मिल जायेगा।सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक होने वाली टोका-टोकी से परेशान हो गया हूँ। जब सो कर उठो ,तो पहले बिस्तर ठीक करो, फिर बाथरूम जाओ,बाथरूम से निकलो तो फरमान जारी होता है नल बंद कर दिया? तौलिया सही जगह रखा या यूँ ही फेंक दिया? नाश्ता करके घर से निकलो तो डांट पडती है ,पंखा बंद किया या चल रहा है,लाइट बन्द की या जलती ही छोड़ आये हो? क्या – क्या सुनें यार नौकरी मिले तो घर छोड़ दूंगा…..
नियत समय सेआफिस पहुंचा तो वहाँ बहुत सारे उम्मीदवार बैठे थे ,बॉस के बुलाने का सभी इंतज़ार कर रहे थे।साक्षात्कार का समय हो गया था।मैने देखा वहाँ आफिस में बरामदे की बत्ती अभी तक जल रही है,माँ की बात याद आ गई, तो मैने बत्ती बुझा दी।ऑफिस में रखे वाटर कूलर से पानी टपक रहा था,पापा की डांट याद आ गयी ,तो पानी का नल बन्द कर दिया।किसी अभ्यर्थी ने अपना रद्दी पेपर नीचे फर्श पर फेंक रखा था, उसे ट्रैशकैन में डालकर निगाह ऊपर डाली तो बोर्ड पर लिखा था,इंटरव्यू दूसरी मंज़िल पर होगा।सीढ़ियों पर चढ़ना शुरू किया तो देखा कि पूरे प्रकाश होने के बावजूद भी सीढ़ी की लाइट अभी दिन के 10 बजे भी जल रही थी उसे बंद करके आगे बढ़ा ,तो देखा एक कुर्सी रास्ते में पड़ी थी,उसे हटाकर ऊपर गया।
वहां देखा कि पहले से मौजूद उम्मीदवार बॉस के कमरे में जाते और फ़ौरन बाहर आते ,पता किया तो मालूम हुआ बॉस फाइल लेकर कुछ पूछते नहीं,वापस भेज देते हैं।अपनी बारी आने पर कक्ष में घुसते ही मैंने अपनी फाइल बॉस की तरफ बढ़ा दी।कागज़ात पर नज़र दौडाने के बाद उन्होंने कहा-“कब ज्वाइन कर रहे हो?
उनके सवाल से मुझे यूँ लगा जैसे मज़ाक़ हो ,वो मेरा चेहरा देखकर मेरी भावना भाँप कर कहने लगे कि ये मज़ाक़ नहीं हक़ीक़त है।आज के इंटरव्यू में किसी से कुछ पूछा ही नहीं ,सिर्फ सी सी टी वी कैमरे में सबका आचरण और व्यवहार देखा,सभी उम्मीदवार आये लेकिन किसी ने नल या लाइट बंद नहीं किया,न ही पहले से पड़े कागज को उठाया और न ही रास्ते से कुर्सी किनारे की।धन्य हैं तुम्हारे माता-पिता, जिन्होंने तुम्हारी इतनी अच्छी परवरिश की है और इतने अच्छे संस्कार दिए हैं।जिस इंसान के पास आत्म अनुशासन नहीं है वह चाहे कितना भी होशियार और चालाक क्यों न हो ,मैनेजमेंट और ज़िन्दगी की दौड़ -धूप में कामयाब नहीं हो सकता।घर पहुंचकर मम्मी- पापा को गले लगाया और उनसे माफ़ी मांगकर उनका शुक्रिया अदा किया।अपनी ज़िन्दगी की आजमाइश में उनकी छोटी- छोटी बातों पर रोकने और टोकने से,मुझे जो सबक़ हासिल हुआ,उसके मुक़ाबले, मेरे डिग्री की कोई हैसियत नहीं थी और पता चला ज़िन्दगी के तमाम मुक़ाबले में सिर्फ पढ़ाई -लिखाई ही नहीं ,तहज़ीब और संस्कार का भी अपना मक़ाम है…संसार में जीने के लिए संस्कार जरूरी है,केवल डिग्री ही पर्याप्त नहीं है।
*संस्कार के लिए मां बाप का सम्मान जरूरी है।जिन्दगी रहे ना रहे,जीवित रहने का स्वाभिमान जरूरी है*।
*सर्वे भवन्तु सुखिनः*
डॉ ओ पी चौधरी
अ.प्रा.प्रोफेसर,मनोविज्ञान
वाराणासी

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