अप्रामाणिक और तर्कहीन है मैक्स मूलर के थिअरी आफ आर्यन्स का सिद्धांत।
अप्रामाणिक और तर्कहीन है मैक्स मूलर के थिअरी आफ आर्यन्स का सिद्धांत।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है उसके निरंतर विकास के लिए जरूरी है समाज का होना और अत्यंत जरूरी है समाज में किसी सिद्धांत, परिभाषा या विचारों का उद्भव होना।
जीवन जीने के लिए जितनी आवश्यकता हवा, पानी और भोजन की पड़ती है शायद समाज को विकसित होने के लिए भी विचारों की उतनी ही आवश्यकता है।
तमाम विचारकों के अपने मत और उनकी अपनी समझ से सभी ने अपने-अपने सिद्धांत दिए। ऐसे ही एक विचारक और लेखक थे मैक्स मूलर, जिन्होंने पश्चात सभ्यताओं के उद्भव और विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी, एक उनका सिद्धांत जो आज भी तमाम विचारको और लेखकों के लिए बहस का मुद्दा बना हुआ है जिसका नाम है थिअरी आफ आर्यांस। इस सिद्धांत पर पहले भी तमाम बहस और चर्चाएं हुई हैं यह एक तर्कसंगत और सोचनीय विचार है की क्या सच में थिअरी आफ आर्यांस की इतनी प्रगाढ़ भूमिका है जिसे पाश्चात्य लेखक और कलमकार आज तक भारतीय सभ्यताओं के उद्भव और उनकी प्रखरता को स्वीकार नहीं पाए हैं। मैक्स मूलर ने अपने सिद्धांत में प्रमुख बिंदुओं को अवलोकिता करते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया था कि वैदिक काल जिसे हम कान्स्य काल भी कहते हैं, वह कहीं ना कहीं आर्यंस के द्वारा ही निर्धारित किया गया था रिग वैदिक काल जिसमें आर्यन्स के उद्भव और प्रखरता की विशेष रूप से गणना की गई है को प्रमुखता से अपने सिद्धांत में रखकर या बताने की कोशिश कर रहे थे की वैदिक काल में संस्कृत भाषा का प्रयोग आर्यंस ने किया था और वह साइबेरिया या मध्य यूरोप की बर्फीली पहाड़ियों से आर्यंस अपने साथ लेकर आए थे, उनका तर्क है की कांस्य युग ताम्र युग के बाद आया (जिसे हम हड़प्पा की सभ्यता भी बोलते हैं)। और थ्योरी ऑफ़ आर्यंस का तीसरा तर्क उन्होंने दिया की लैटिन भाषा जिसके कुछ शब्द संस्कृत भाषा से मिलते जुलते हैं कि उत्पत्ति भी आर्यों द्वारा हुई थी, जो साइबेरिया से होते हुए पूरे विश्व में फैली। अब विचारणीय विषय यह है कि ताम्र युग जिसे मैक्स मूलर बताते हैं कि हड़प्पा सभ्यता (कांस्य युग) के बाद आया था क्या यह तर्कहीन नहीं लगता कि पहले तांबे की खोज हुई होगी उसके बाद अन्य धातुओं को मिलाकर कांसा बना होगा। जो यह सिद्ध करता है कि मैक्स मूलर ने सभ्यताओं के उद्भव और उन सभ्यताओं में प्रयोग हुई वस्तुओं का ठीक से निस्तारण करके विचार प्रकट नहीं किया। दूसरा तर्क उन्होंने भाषा को लेकर जो दिया है की आर्यंस ने संस्कृत भाषा की खोज की जिससे पूरी दुनिया में संस्कृत का विस्तार हुआ और वह यूरोप और रूस की मध्य में स्थित बर्फीली पहाड़ियों से होते हुए भारतीय उपमहाद्वीप और यूरोपीय उपमहाद्वीप पर फैला। अब भारतीय दार्शनिकों और विचारों का एक मत यह है कि संस्कृत भाषा का उद्भव और उत्पत्ति केवल और केवल भारतीय उपमहाद्वीप में हुई क्योंकि संस्कृत भाषा कि सारी की सारी पांडुलिपियां भारतीय उपमहाद्वीप में ही मिली जिसके प्रमाण स्वयं वेद हैं पूराण हैं और ग्रंथ हैं। एक तर्क यह भी है कि हो सकता है मनुष्यों की उत्पत्ति से और घूमने टहलने से भी भाषाओं का आदान-प्रदान निश्चित होता है। मैक्स मूलर ने आर्यों को अक्रांत माना है जो की लोहे का उपयोग करते थे जबकि रिग वैदिक ऋचाओं से यह सिद्ध हो चुका है कि रिग वैदिक आर्यों को ऋग्वेद लिखे जाने तक केवल एक ही धातु का ज्ञान था वह धातु थी तांबा। यहां तक की महाभारत कालीन पुरस्थलों जैसे सिनौली तथा हस्तिनापुर की खुदाईयों से यह सिद्ध हो चुका है कि आर्यों को महाभारत काल तक भी लोहे का ज्ञान नहीं था, आर्यों द्वारा ऋग्वेद की रचना महाभारत के युद्ध से कई हजार वर्ष पूर्व सप्त सिंधु क्षेत्र में की गई थी जिसमें सरस्वती नदी का क्षेत्र प्रमुख था। जबकि महाभारत का युद्ध एवं महाभारत ग्रंथ का लेखन आर्यों द्वारा गंगा नदी के क्षेत्र में किए गए थे इस प्रकार रिग वैदिक सभ्यता सरस्वती क्षेत्र की सभ्यता है जबकि महाभारत की सभ्यता गंगा क्षेत्र की सभ्यता है उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के सिनौली तथा मेरठ के निकट हस्तिनापुर से महाभारत कालीन सभ्यता के पूरा स्थलों की पहचान की गई है इन पूरा स्थलों से तांबा और स्वर्ण धातुओं से निर्मित सामग्रिय मिली हैं इन स्थलों से लोहे का एक भी पत्र हथियार अथवा औजार प्राप्त नहीं हुआ है। भारत में रिग वैदिक सभ्यता से लेकर महाभारत कालीन सभ्यता तक का समय ताम्र युगीन अर्थात ताम्र पाषाणिक सभ्यता को ठहराता है। अर्थात रिग वैदिक सभ्यता रमकालीन सभ्यता एवं महाभारत कालीन सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता से प्राचीन अथवा उसके समकालीन रही होगी। किसी भी स्थिति में रिग वैदिक सभ्यता रमकालीन सभ्यता एवं महाभारत कालीन सभ्यताएं सिंधु सभ्यता के बाद कि नहीं है क्योंकि यह सभ्यताएं ताम्र युगीन थी जबकि सिंधु घाटी सभ्यता कास्यूगीन है। प्राचीनतम आर्यों की बस्तियां यूरोप से लेकर मध्य एशिया एवं भारत में सप्त सिंधु प्रदेश तथा सरस्वती के तट तक पाई गई हैं किंतु आर्यों की सभ्यता का इतिहास निश्चित रूप से इन बस्तियों से भी पुराना है। आर्यों के प्राचीनतम साहित्य अर्थात ऋग्वेद का रचनाकाल ईसा पूर्व 4000 माना जाता है किंतु संभव है कि भारत में आर्य इस अवधि से भी पहले से रह रहे हो रिग वैदिक सभ्यता कितनी पुरानी है इसका अनुमान ऋग्वेद में आई ऋचाओं से लगाया जा सकता है। मैक्स मूलर आदि ऋग्वेद काल को इस पूर्व 2500 के बीच रचा गया मानते हैं जबकि वेद खुद प्रमाण देते हैं कि जिस काल में आर्यों ने ऋग्वेद की रचना की उसे कल में मानव सभ्यता उन्नत अवस्था में पहुंच चुकी थी रिग वैदिक सभ्यता के मनुष्यों को ज्ञान विज्ञान संस्कृत एवं आध्यात्मिक गहरी रुची थी इस सभ्यता का मनुष्य अत्यंत चिंतनशील एवं करुणा से भरपूर था इस सभ्यता के मनुष्यों का चिंतन इतना उन्नत था कि वह धरती के समस्त मनुष्य एवं प्राणियों के कल्याण के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता था। भीड़ भड़ाना की खुदाई से पहले भारत में इस तरह की कोई सभ्यता प्राप्त नहीं हुई थी इस सभ्यता की विशेषता यह है कि इसमें भूमिगत आवास पा गए हैं यह आवास भूमि में गड्ढे खोदकर बनाए गए हैं इसी के आधार पर इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता से भी पुरानी सभ्यता माना गया है। यह घघ्घर नदी के किनारे मिला है जिसको प्राचीन काल में सरस्वती नदी की एक धारा माना जाता था। आर्य भारत की प्राचीनतम जातियों में शहर तथा आर्य भारतीय उपमहाद्वीप के मूल निवासी हैं भारत में आर्य और द्रविड़ जैसी दो जातियों के निवास एवं संघर्ष का सिद्धांत गलत है, भारत की सिंधु सभ्यता से लेकर अंडमान निकोबार तक के लोगों का डीएनए एक ही है। राखीगढ़ी से मिले डीएनए का मिलान मध्य एशिया की प्राचीन सभ्यताओं से मिले किसी भी नर कंकाल के डीएनए से नहीं हुआ है, इससे सिद्ध होता है कि राखी घड़ी के लोगों का मध्य एशिया के लोगों से कोई संबंध नहीं था। भारतीय विचारों का एक अनुमान यह भी है कि 10 12000 साल से संपूर्ण एशिया का एक ही जिन रहा है किंतु यूरोप और मध्य एशिया आदि क्षेत्रों से भारत में आने वाले विदेशियों से भारतीय जीन में मिक्सिंग होती रही है इस कारण आर्यों में काले, गोरे, गेहूं सभी रंगों के मनुष्य सम्मिलित हैं। तमाम डीएनए के आधार पर प्रोफेसर शिंदे ने आर्य और द्रविड़ को एक ही माना है। इन इतिहासकारों के अनुसार द्रविड़ जाती आर्य जाति की एक शाखा है भारत के मूल निवासियों ने शिकार करने से लेकर पशु चारण करने पशुपालन करने खेती करने घर बनाने एवं वेदों की रचना करने तक की लंबी यात्रा स्वयं ही तय की है। हड़प्पा कालीन मानव कंकालों ने शोध के नए दरवाजे खोले हैं इन दोनों स्थलों से मिली सभ्यताएं आर्य सभ्यताएं हैं तथा यहां से प्राप्त मानव कंकालों के डीएनए हड़प्पा सभ्यता के कंकालों से मिले मानव डीएनए से मेल खाते हैं वैज्ञानिकों ने अपना निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि हड़प्पा सभ्यता को विकसित करने वाले मनुष्य भारतीय उपमहाद्वीप के ही थे आर्य और ग्रामीण सभ्यता में संघर्ष के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं उनके अनुसार आर्य भारतीय उपमहाद्वीप के थे और मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता एवं वैदिक सभ्यता के लोग एक ही थे। यहां के लोग ही ईरान मध्य एशिया मध्य यूरोप में व्यापार और खेती करने गए थे। आर्य किसी जाति का नाम न होकर श्रेष्ठ अर्थ युक्त विशेषण है जैन बौद्ध एवं हिंदू ग्रंथो के अनुसार आर्य शब्द का आशय किसी जाति से न होकर श्रेष्ठ व्यक्ति से है। इसी कारण वेदों में “कृण्वतो विश्वम आर्यम” का उद्घोष मिलता है जिसका शाब्दिक एवं व्यावहारिक अर्थ है संसार को श्रेष्ठ बनाएंगे यदि आर्य किसी जाति का नाम होता तो वेदों में यह उद्घोष नहीं मिलता क्योंकि किसी की जाती नहीं बदली जा सकती। अगर भाषाई आधार पर मैक्स मूलर ने यह तर्क सही ढंग से दिया होता तो शायद उन्हें यह विचार अवश्य करना चाहिए था की भाषा के आधार पर जातीय पहचान स्थापित करने वाले मतों को इसलिए पूर्णता तर्कसंगत नहीं माना जा सकता क्योंकि जब कोई जाति अपना क्षेत्र छोड़कर किसी अन्य प्रदेश में जाती है तो वह इस क्षेत्र की भाषा में व्यवहार करने लगती है और कुछ समय में अपनी मूल भाषा को भूल जाती है जैसे कि आज कुछ क्षेत्रीय भाषाएं जो जो आज मनुष्यों के व्यवस्थापन होने से बदला जा रही हैं। उदाहरण स्वरूप मंगल एवं चकटाई भाषाएं बोलते थे आज उन तुर्कों एवं मुगलों की संताने अपने पूर्वजों की भाषण पूरी तरह भूल चुकी हैं तथा भारत की क्षेत्रीय भाषाएं अथवा हिंदी या अंग्रेजी बोलते हैं अब यह भलीभांति स्वीकार कर लिया गया है की भाषा का जाति से कोई निश्चित संबंध नहीं होता अपितु क्षेत्र से होता है। रिग वैदिक कल में आर्य परिवार एक पितृतंत्रात्मक परिवार था जिसमें पिता मुखिया होता था और वही कुटुंब का प्रधान होता था। जबकि हड़प्पा सभ्यताओं में ऐसा कोई तर्क नहीं मिला। क्योंकि यूरोपीय इतिहासकारों या सिद्धांत प्रतिपादित करना था कि ब्रिटेन वीडियो की तरह आर्य भी भारत में बाहर से आए हैं इसलिए उन्होंने सेंधव सभ्यता को आर्यों के आक्रमण में नष्ट होने का मिथक गढा। बाकी विषय तो शोध और तरह-तरह के आयाम और विचारों से परिपूर्ण है नई तकनीक और शिक्षा विदित प्रधानों से होकर गुजरी यह सभ्यताएं हमें मूल स्वरूप तभी प्रदान कर पाएंगे जब इन पर और प्रामाणिक और पौष्टिक रूप से विचार विमर्श और तर्क किया जाए।
आलोक प्रताप सिंह
विचारक एवं विश्लेषक