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हिंदी हमारी अस्मिता है।

हम भारत वासियों में कितने ऐसे लोग है जिन्हे अपनी भाषा से लगाव है? अधिकांश अंग्रेजी भाषा के जानकार लोग अंग्रेजी में बात करते हुए देखे जाते है। वे अंग्रेजी में बात करना शिक्षित होने के प्रमाणपत्र एवं सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक मानते है। हमारे देश के प्रतिनिधि को राष्ट्रभाषा में बोलने में लज्जा का अनुभव होता है और वह अंग्रेजी भाषा के माध्यम से सम्मेलन के प्रति सद्भावनाएं व्यक्त करता है। भले ही हिंदी हमारी राज भाषा है परंतु राष्ट्रभाषा बनने की दिशा में अग्रसर है। एक घटना का जिक्र कर रहा हूं जब वर्ष 1913 में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को गीतांजलि जैसे महान ग्रंथ लिखने के लिए विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार नोबेल पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया था।1916 में जापान सरकार के आमंत्रण पर वह टोक्यो गए। वहां उनके सम्मान में शाही भोज आयोजित किया गया । अपने प्रति दिए गए सम्मान के लिए धन्यवाद करते हुए उन्होंने बंगला भाषा में भाषण करना आरंभ किया । एक श्रोता ने उठकर कहा ” आप तो अंग्रेजी के महान विद्वान है , आप अंग्रेजी ने भाषण क्यों नही करते हैं ?” उत्तर देते हुए गुरुदेव ने कहा ” मैं आपकी भाषा में बोलूं अथवा अपनी भाषा में बोलूं ? जापानी भाषा का ज्ञान मुझे है नही , इसी कारण मैं अपनी भाषा बंगला में बोल रहा हूं । कहने का तात्पर्य है अपनी भाषा को लेकर मन में कभी भी संदेह नहीं रखना चाहिए कि यह हमारे लिए शर्म की बात है। संभवतः हम महात्मा गांधी की वे बातें भी भूल गए हैं जब उन्होंने एक से अधिक बार कहा था कि हिंदी का प्रश्न स्वराज्य के समकक्ष महत्वपूर्ण है और हिंदी के अभाव में स्वराज्य अधूरा ही माना जायेगा। हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे कर्णधार वोटों की राजनीति में इस सीमा तक उलझ गए हैं कि राष्ट्र के व्यापक एवं दीर्घकालीन हितों की ओर ध्यान देने के लिए उनके पास समय नहीं रह गया है। आजादी के 75 वर्षो बाद भी हिंदी भाषा को वह सम्मान प्राप्त नही हुआ है जिसका वह अधिकार रखता है। आज जरूरत इस बात की है कि हिंदी भाषा को बढ़ावा दिया जाए। ज्यादा से ज्यादा काम हिंदी भाषा ने ही किया जाय। हिंदी भाषा को सरल और सर्वहितैषी भाषा भी कहा जाता है। वास्तव में हम कह सकते है कि हिंदी भाषा हमारी पहचान और अस्मिता से जुड़ा हुआ है इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है।

लेखक – आशीष अम्बर
जिला – दरभंगा बिहार
पिन -847337.

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