“भाषाई एकता के नायकः सुब्रह्मण्यम भारती”संगोष्ठी एवं काव्य पाठ
“भाषाई एकता के नायकः सुब्रह्मण्यम भारती”संगोष्ठी एवं काव्य पाठ
लखनऊ, भाषा विभाग उ० प्र० शासन के नियंत्रणाधीन उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, इन्दिरा भवन, लखनऊ में “भाषाई एकता के नायकः सुब्रह्मण्यम भारती (संगोष्ठी एवं काव्य पाठ)” विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के निदेशक श्री विनय श्रीवास्तव जी ने की।
कुशल संचालन डॉक्टर रश्मि शील ने किया।
माँ वीणा पाणि के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन कर माल्यार्पण के साथ संगोष्ठी का शुभारम्भ किया गया।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि और अवधी के वरिष्ठ कवि डा० सुनील कुमार बाजपेयी जी नें अपने वक्तव्य में कहा
दुनिया आ गयी मुट्ठी मइहा, हर बन्द रास्ता खुलिगा है, हर काम भवा आसान सुलम, जबते मोबाइल चलिगा।
कार्यक्रम अध्यक्ष अतिथि डा० अनामिका श्रीवास्ताव जी ने कहा कि रेडियो पर बचपन में तमिल का देश भक्ति गीत ‘उडि बिलयाडि पापा’ के रचनाकार डा० सुब्रम्हण्यम भारती थे, देशगीत सुना करते थे तब उसे ज्यादा समझ नहीं पाते थे उन्होंने भाषाई एकता में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जब मैने उन्हें पढ़ा तो यह लगा कि वे महाभारत गीता इत्यादि से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने उत्तर भारत के विविध ग्रन्थों का तमिल में अनुवाद किया। वे सिस्टर निवेदिता को अपना गुरू मानते थे। उस प्रकार स्त्री के प्रति एक आदर का भाव प्रदर्शित होता है।
मुख्य अतिथि डा० अब्दुल रहीम, जी ने कहा कि स्वतंत्रता पायी भारत ने बीते कितने दिन माह साल पुरब, पश्चिम, उत्तर, दक्खिन भाषा का फैला जाल उर्दू में मीर गालिब, काजी नजरूल बंगाली हिन्दी में सूर-तुलसी तमिल में सुब्रम्हण्यम और आण्डाली स्वतंत्रता पायी भारत ने बीते कितने दिन माह साल।
कुमाउनी के वरिष्ठ साहित्यकार व मुख्य वक्ता नारायण पाठक, जी ने कुमाउनी कविता सुनाई तो श्रोता झूम उठे।
कुमाउनी गजल-
जून की टुकुडि जैसी, छाज बटी चायीं न कर दिल छु म्यर यो कुंड न हैं, तसिक जुलम ढाई न कर। लौटा दे कोई फिर से मुझको बचपन के वो चार दिन गुल्ली-डण्डा, कंचा फिरकी मस्ती के दो चार दिन।
डा० रश्मि शील जी ने कहा कि सुब्रम्हण्यम भारती जी ने भाषाई एकता के लिए देशाटन किया है। वे स्वयं 32 से अधिक भाषायें जानते थे। परन्तु उन्होंने हिन्दी को राष्ट्रीय एकता के लिए महत्वपूर्ण माना। पूर्वी भारत का साहित्य जानने व समझने के लिए वे काशी आए। उनका योगदान अप्रतिम है।
इस कार्यक्रम में निदेशक ने अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यक्रम के समापन की घोषणा की। इस अवसर पर अंजू सिंह, मीना सिंह, हर्ष राज अग्निहोत्री, रवि, ब्रजेश, प्रियंका टण्डन, सोनी, शशि, आदि अनेक साहित्कार, विद्वान व इंदिरा भवन में कार्यरत अधिकारी एवं कर्मचारी गण उपस्थित रहें।
उपस्थित विद्वानों, श्रोताओं द्वारा कार्यक्रम की भूरि भूरि प्रशंसा की गई।
निदेशक
विनय श्रीवास्तव
उ० प्र० भाषा संस्थान लखनऊ।