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सुब्रमण्यम भारती जी के साहित्य की प्रासंगिकता

सुब्रमण्यम भारती जी के साहित्य की प्रासंगिकता
सुब्रमण्यम भारती (1878-1921) भारतीय साहित्य के महान कवि, पत्रकार, और समाज सुधारक थे। उनका साहित्य भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति की गहरी समझ को दर्शाता है। वे विशेष रूप से तमिल साहित्य में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन उनका प्रभाव भारतीय साहित्य के अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ा। उनकी रचनाएँ न केवल उनकी कालजयी प्रासंगिकता का प्रमाण हैं, बल्कि आज भी हमारे समाज की समस्याओं और जरूरतों से जुड़ी हुई हैं।
1. भारती जी का साहित्य सामाजिक सुधार के प्रति उनके गहरे समर्पण को दर्शाता है। उन्होंने जातिवाद, महिलाओं की दीन-हीन स्थिति और अंधविश्वास जैसे मुद्दों को अपनी कविताओं और लेखों में प्रमुखता से उठाया। उनकी कविताएँ आज भी महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक समानता की आवश्यकता को स्पष्ट करती हैं।
2. भारती जी के साहित्य में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक स्पष्ट रूप से देखे जाते हैं। उनकी कविताओं में देशभक्ति और स्वतंत्रता का संदेश विद्यमान है। “वन्दे मातरम्” और “भारती के बारे में” जैसी कविताएँ उनके राष्ट्रीय विचारों की झलक देती हैं। उन्होंने भारतीय जनता को जागरूक करने और विदेशी शासन से मुक्ति पाने के लिए प्रेरित किया।
3. भारती जी ने भारतीय समाज को आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने स्वदेशी उत्पादों और परंपराओं को महत्व दिया। उनके विचार और लेखन आज भी हमें अपने देश के संसाधनों का सही उपयोग करने और अपने आत्मविश्वास को पुनर्जीवित करने की प्रेरणा देते हैं।
4. उनकी काव्य रचनाएँ न केवल भाषाई दृष्टिकोण से, बल्कि भावनात्मक रूप से भी बेहद प्रभावशाली हैं। उनकी कविताएँ सरल और प्रौढ़ भाषा में लिखी गई हैं, जो आम जनता के दिलों तक पहुँचती हैं। भारती जी का साहित्य हर वर्ग के लिए सुलभ था, और उनका रचनात्मक योगदान आज भी भारतीय समाज में गूंजता है।
5. सुब्रमण्यम भारती का साहित्य आज भी अत्यधिक प्रासंगिक है। उनका कार्य न केवल राष्ट्रीयता, समानता और सामाजिक न्याय के लिए प्रेरणा देता है, बल्कि वर्तमान में भी उनके विचार हमारे समाज और राजनीति में गहरी उपस्थिति बनाए हुए हैं। उनके साहित्य का महत्व आज के संदर्भ में भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना उनके समय में था।
डॉ. ओम ऋषि भारद्वाज, कवि एवं साहित्यकार एटा उत्तर प्रदेश।

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