कहानी विद्यालय का भूत
कहानी
विद्यालय का भूत
बात उस समय की है ,जब विद्यालय खुलने के समय से काफी देर बाद चहकते हुए बच्चे बरसात की रिमझिम बूंद के साथ स्कूल में प्रवेश कर रहे थे! सामने बैठे गुरुजी बालकों का इंतजार करते हुए खुशी से बोले ,”अरे बच्चों इतनी देर में क्यों आए ?” सभी बच्चों ने जवाब दिया ,”गुरुजी हम सभी बच्चों को इकट्ठा करके एक साथ विद्यालय में आना चाहते थे।” गुरु जी ने पूछा इसका क्या मतलब है ?क्या विद्यालय में आने से तुम्हें डर लगता है? तो किसी एक बच्चे ने उत्तर दिया,”गुरुजी डर नहीं लगता परंतु !कल गांव के भैया जी ने बताया की स्कूल में मत जाना वहां भूत है!” स्कूल के पेड़ पर एक चुड़ैल रहती है!वह बच्चों को खा जाती है! इस कारण सभी बच्चे डर गए और स्कूल में अकेले आना नहीं चाहते। बहुत से बच्चे तो ऐसे भी हैं जो स्कूल आ ही नहीं रहे हैं ।गुरुजी चौंक कर बोले,” कौन कमबख्त ऐसा मजाक कर रहा है ?भूत भी होते हैं भला !कोई चुड़ैल या भूत नहीं होता !” एक बच्चे ने जवाब दिया ,”नहीं नहीं गुरुजी !आपको नहीं मालूम वह भैया बता रहे थे कि स्कूल में एक भूत और एक चुड़ैल है।गांव की औरतें भी कह रही थी कि यह बात सही है। गुरुजी का माथा ठनका और उन्होंने प्रधान जी को इस बात की सूचना दी। प्रधान जी समस्या को गंभीरता से लेते हुए विद्यालय पहुंचे और इस विषय पर गुरुजी से चर्चा करने लगे। गुरुजी ने बोला,इस घटना के पीछे क्या मकसद हो सकता है,इसका पता अवश्य लगाना चाहिए ।क्या विद्यालय में छुट्टी के बाद कोई गलत काम होता है?क्या मनचले विद्यालय में एकांत का नाजायज फायदा उठाते हैं ?गुरुजी ने ज्यादा इस पर चर्चा ना करते हुए प्रधान जी को इशारा किया कि इस विषय को चुपचाप ही सुलझाना होगा ,ताकि चर्चा का विषय ना बने। बच्चों से प्रार्थना के बाद कक्षा में जाने को कहा और नियमित पढ़ाई शुरू कर दी। छुट्टी के बाद गुरुजी और प्रधान जी ने एक दो और वरिष्ठ लोगों के साथ यह तय किया कि आज विद्यालय में ही शांत रहकर भूत और चुड़ैल का प्रचार करने वाले भैया जी के बारे में पता लगाया जाए । करीब 5:00 बजे सायं कथित भैया जी और उनके दो चेले विद्यालय के बंद गेट को कूद कर अंदर आए और एक दूसरे से कहने लगे भैया भूत चुड़ैल का होना भी बहुत जरूरी है ।तभी तो हम यहां पर आराम से अपनी मौज मस्ती कर सकेंगे ।ऐसा कहते हुए उन्होंने अपनी बैग से शराब की बोतल तथा खाने-पीने की चीज़ें निकाली और बड़े ठाठ से पीने लगे। गुरुजी का शक सही निकला। उन्होंने प्रधान जी की ओर इशारा करते हुए कहा देखो चुड़ैल मदिरा में मस्त है ।दोनों ठहाके के साथ उनके रंग में भंग डालने के लिए उनके बीच में प्रकट हो गए।उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया ।उनसे पूछा की और कौन-कौन सा कुकृत्य करने वो यहां आते हैं! पहले तो तीनों पल्ला झाड़ते हुए ना नुकुर करते रहे,तब प्रधान जी ने पुलिस में रिपोर्ट करने की धमकी देकर क़ब्ज़े में लेने का सफ़ल प्रयास किया।उन्होंने बताया कि गांव में होने वाली सभी छोटी बड़ी चोरियां,जुआ खेलने, नशा करने, छोटे बच्चों को नशे की लत लगाने, महिलाओं के साथ व्यभिचार करने की सभी योजनाएं चुड़ैल की आड़ में यहीं बनाई जाती थीं। पशु मेले की पहली रात गांव के मवेशी व भैंस चुराने की योजना भी यहीं से सफ़ल हो पाई।छोटे-छोटे नोनीहालों को नशे की लत में डालकर अपना व्यापार बढ़ाने की भी सोच रहे हैं ।इस पर हंसते हुए प्रधान जी ने कहा कि तुम्हारी इस मनसा पर गुरु जी की सूझबूझ ने पानी फेर दिया। प्रधान जी ने पुलिस को बुलाया ।घटना की अक्षरशः जानकारी देकर उन्हें गिरफ्तार करवाया । गांव में चोरी, व्यभिचार एवं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक नशे की लत में बर्बाद होने की योजना को विराम दिया ।इस कहानी का आशय यह है कि हमें निस्वार्थ होकर भी समाज के प्रति जागरूक रहना चाहिए।अपना कर्तव्य समझना चाहिए कि हम कहीं भी गलत होने वाली घटना को स्वीकार नहीं करेंगे । उसका विरोध करेंगे तथा अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे।
इस कहानी से सीख मिलती है कि बुरा काम कभी न कभी किसी अच्छे व्यक्ति की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के चंगुल में फंस ही जाता है।
लेखक -जगदीश चंद्र जोशी