खिल उठे ग़ुलाब: एक विवेचना विवेचक -रमेशचन्द्र द्विवेदी
खिल उठे ग़ुलाब: एक विवेचना
विवेचक -रमेशचन्द्र द्विवेदी
सुश्री सीमा गर्ग ‘मंजरी’ हिन्दी साहित्य की सुपरिचित साहित्यकार हैं। अनेकानेक साहित्यिक सम्मानों से विभूषित तथा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुचर्चित साहित्यकार के रूप में आप प्रतिष्ठापित हैं। ऑल इंडिया रेडियो- नजीबाबाद से आपकी कविताओं का प्रसारण भी हो चुका है। दैनिक समाचार पत्रों एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में आपकी रचनाओं का प्रकाशन अद्यावधि गतिमान है। अब तक उनकी सात कृतियाॅं प्रकाशित हो चुकी हैं। भाव-मंजरी, सुमन -मंजरी, काव्य- कस्तूरी और काव्याॅंजलि जैसी काव्यात्मक कृतियाॅं, लक्ष्मण रेखा और एक टुकड़ा धूप का- कहानी संग्रह तथा विवेच्य कृति -खिल उठे ग़ुलाब औपन्यासिक कृति। गद्य और पद्य दोनों विधाओं में समान रूप से सर्जना करने में आप सिद्धहस्त हैं।
‘खिल उठे ग़ुलाब’ उनकी प्रथम औपन्यासिक कृति है। सामाजिक पृष्ठभूमि पर वर्णनात्मक शैली में लिखा यह उपन्यास वस्तुत: प्रेम कहानी है । गद्य शिल्प में स्रजित उपन्यास को जीवन का महाकाव्य कहा जाता है। उप का अर्थ होता है समीप और न्यास का अर्थ होता है रचना। उपन्यास में आदर्श और यथार्थ, कल्पना व यथार्थ तथा रोमाॅंस और नाटकीयता का पुट पाया जाता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो इस उपन्यास में इनका समुचित समावेश है। उपन्यास कहानी का विस्तारित रूप होता है । अतः कहानी कला के तत्वों-कथानक, पात्र, संवाद, देशकाल,भाषा-शैली और उद्देश्य की प्रवृत्ति स्वत: परिलक्षित होती है। अंतर सिर्फ इतना होता है कि उपन्यास में पात्रों की संख्या अधिक होती है। घटनाओं और चरित्र -चित्रण का विधान करते समय गतिमयता का विशेष ध्यान रखा जाता है। कथा के सूत्रों को इस तरह से पिरोया जाता है कि वह कहीं से भी अस्वाभाविक न हो ।
‘खिल उठे ग़ुलाब’ में काॅलेजिएट कल्चर का स्पष्टतः प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। उपन्यास की कथा काॅलेज,आवास, कैंटीन, रेस्टोरेंट,लाॅन, पार्टी, पार्क के इर्द-गिर्द घूमती है।काॅलेज का खुला संसार नवागन्तुक छात्र-छात्राओं को अपने मोह-जाल में आबद्ध करता है। विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण परिचय,मित्रता और प्यार के सोपानों पर आरूढ़ होता हुआ परवान चढ़ता है। स्वछंद जीवन – शैली का पथ प्रशस्त होता है। इस उपन्यास में समानांतर तीन प्रेम कहानियाॅं चलती हैं। इनकी परिणिति शादी में होती है। मायरा-अमन, गौरी-ऋतिक, सनाया-अमित परिणय सूत्र में बॅंधते है। उदीची, कविश, छाया, शिवा कथा के संवाहक और सूत्रधार हैं। इनकी मित्रता परस्पर विश्वास, त्याग, समर्पण और सहयोग की भावना पर आधारित है। काॅलेज की कैंटीन में विषयगत चर्चा के अलावा सामाजिक,राजनीतिक व पारिवारिक सरोकारों से संबंधित मुद्दे भी शामिल होते हैं। प्रतियोगिता और कैरियर की संभावना भी तलाशी जाती है। इन पात्रों की पारिवारिक पृष्ठभूमि में उच्च, मध्यम और निम्न वर्ग आय वर्ग के छात्र विचारों की संकीर्णता से परे हटकर सर्वस्व समर्पण की भावना से योजित होते हैं।
‘खिल उठे ग़ुलाब’ का खलनायक निखिल है । वह काॅंलेज के प्रबंधक और विधायक का पुत्र है । लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार करना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। सनाया और उदीची उसकी शिकायत प्राचार्य से करते हैं और प्राचार्य उसे प्रताड़ित करते हुए काॅलेज से बहिष्कृत करने की चेतावनी देते हैं। इसे वह अपना अपमान समझता है। उपन्यास के अंत में वह उदीची के साथ बलात्कार करने की कोशिश करते समय कवीश के हाथों मारा जाता है। शिवा, कवीश के वकील की भूमिका में उसे बेदाग़ बरी करा लेता है। सच्चा मित्र वही होता है जो सुख-दुख में मित्रता धर्म का निर्वाह करता है। शिवा, सनाया से प्रेम करता है किन्तु वकालत करने के लिए वह तीन साल के लिए यूरोप चला जाता है। सनाया की शादी अमित से होती है । एक दुर्घटना में अमित का अंत हो जाता है और शिवा अपने प्यार को प्राप्त कर लेता है। विधवा विवाह को मान्यता देना इस उपन्यास के कथा-सूत्र में है । शिवा की मम्मी कैंसर रोग से पीड़ित हैं उनके ईलाज़ में भी उसके दोस्त ही मददगार होते हैं।
विवेच्य उपन्यास के नामकरण का आधार गौरांगबदनी मायरा के शादी के समय पहना परिधान है। उसकी खूबसूरती ग़ुलाब की तरह खिल उठती है। मुझे छायावाद के प्रवर्तक जय शंकर प्रसाद की पंक्तियाॅं अनायास याद आ जाती है। श्रद्धा का सौन्दर्य निरूपण करते समय जब वो रूपक,उत्प्रेक्षा, विशेषण-विशेषोक्ति अलंकारों से अलंकृत करते हुए कहते हैं -‘नील परिधान बीच सुकुमार/खिल रहा मदुल अधखुला अंग/खिला हो ज्यों बिजली का फूल/ मेघ वन बीच गुलाबी रंग ।।
दो सौ अस्सी पृष्ठों में आबद्ध उपन्यास को लेखिका सीमा गर्ग ‘मंजरी’ ने करीने से सजाया और सॅंवारा है। कथा-सूत्र की कड़ियों को जोड़ने का श्लाघनीय प्रयास किया है। कथानक में गतिमयता है। संवादों में प्रभविष्णुता है। कविताओं और फिल्मी गीतों से उपन्यास को पठनीय और रोचक बनाया गया है। यह उपन्यास युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन का काम करेगा। मात्रागत त्रुटियों व शब्द संयोजन के प्रति लेखिका को सतर्क कर दिया गया है। साहित्य सेवा प्रकाशन पंचकूला चंडीगढ़ तथा शिवा प्रिंटर्स को इस उपन्यास को प्रकाश में लाने के लिए बधाई। मुझे आशा और विश्वास है कि यह उपन्यास हिन्दी के पाठकों को अनुरंजित करेगा। मैं मंजरी जी को इस प्रथम प्रयास के लिए शुभकामना प्रेषित करता हूॅं। अगर प्रयास किया जाय तो पाषाण में भी ग़ुलाब खिलाया जा सकता है। यह उपन्यास कल्पना और यथार्थ का मणिकांचन योग है -ऐसी मेरी मान्यता है।
विवेचक
रमेशचन्द्र द्विवेदी
पूर्व प्रधानाचार्य
हल्द्वानी – नैनीताल