बच्चों के मुख से
बच्चों के मुख से
कौन कहता है बचपन
अच्छा होता
कहां कोई अपने मन की
करने देता
यह करो ना करो बनो अच्छे
सब का कहना होता
जल्दी उठ तैयार हो स्कूल
पहुंचना होता
बस्ते के बोझ से कमर झुकी कोई
व्यथा सुनने वाला होता
मम्मी की डाट पीछा कर टीचर की
डांट तक साथ होता
भला मुझे बताओ तो जरा बचपन
कहां से अच्छा होता
ना यहां ना वहां जाओ दिन रात
का सिलसिला होता
तुम छोटे हो कुछ न बोलो बससुनो
मत बोलो यही होता
यह ना करो वह ना करो चुपचाप
बैठो यही होता
तुम ऐसे वैसे हो सब क्या कहेंगे
कैसे हो यही होता
मम्मी पापा का गुस्सा मुझ पर ही
उतरता रहता
दीदी भी डांटती मारती कान
खींचती यही होता
चुन्नू यह लाओ वह ले आओ सब
यही होता
घर बाहर मौज मस्ती पर बंदिशे हैं
सहा नहीं जाता
मां पापा का प्यारा हूं तो बचपन
मेरा मुझे चाहिए
बोझ ना हो बचपन मुस्कुराता
हुआ जीवन मुझे चाहिए
डॉक्टर सरिता अग्निहोत्री सजल मंडला मध्य प्रदेश