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बीता कल

बीता कल

चलो मिलें इक बीते कल से
भरे भरे कुछ रीते पल से

अरे आज मेरी बारी है
माँ संग आज मै सोऊंगी
चादर मोटी मोटी लगती
धोती का पल्लू ओढूंगी

बहनों बहनों की लड़ाई
था बचपना दूर थी छल से
चलो मिलें इक बीते कल से
भरे भरे कुछ रीते पल से

थाली नीचे ओट लगा के
सब्जी ठंडी हो जाती थी
तवे से उतरी इक इक रोटी
चार कौर में बंट जाती थी

तीखी चटनी के चटकारे
हाथों पीसी जाती सिल से
चलो मिलें इक बीते कल से
भरे भरे कुछ रीते पल से

बडी़ कठिन विदाई बहनों की
गीली आंखों की मनुहार
डोली से तकती दो आंखें
छूटी माँ आंचल का प्यार

मिलने रचते नये बहाने
नहीं भूलता बचपन दिल से
चलो मिलें इक बीते कल से
भरे भरे कुछ रीते पल से

गुजरी उमर शून्य है दिल में
कैद बीच यादों का मेला
छोड़ राह में जब जी चाहे
उड़ जाता है हंस अकेला

रह जाते जो भवसागर में
उठ ना पाते दुख के तल से
चलो मिलें इक बीते कल से
भरे भरे कुछ रीते पल से

माला अज्ञात….
ग्वालियर
म प्र

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