महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण एक नजर
क्या है महिला आरक्षण विधेयक? महिला आरक्षण पर एक नजर डाले तो भारत के लोकसभा और राज्यसभा में 33% महिलाओं को आरक्षण देना यह प्रावधान है। अर्थात लोकसभा और राज्यसभा के तीसरी व्यक्ति यह महिला होगी, इस प्रकार का प्रावधान महिला आरक्षण विधेयक में रखा गया है ।अर्थात आज वर्तमान में लोकसभा में 82 सीटों की जगह पर 181 सीटों पर महिलाएं सदस्य ही होगी। इस बिल का इतिहास देखा जाए तो ,सबसे पहले एचडी देवे गौड़ा की सरकार ने 1996 में इसे पेश किया गया था, लेकिन तब यह बिल पास नहीं हुआ, उसके बाद बहुत सारे तमाम सरकारों ने इसे कानून का रूप देने का प्रयास किया गया, लेकिन यह बिल 27 वर्ष तक लटका रहा। आखिर इसे 128 वें संविधान संशोधन विधेयक के तरह इसे पेश किया गया। हमारे भारत के केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवालजी ने इस बिल को “नारी शक्ति अधिनियम” नाम देकर पेश किया गया। यह विधेयक 2026 से लागू होगा। भारत में यह विधेयक लागू होने के बाद 15 वर्ष तक आरक्षण का प्रभाव रहेगा, इसके बाद सीटों का आवंटन रोस्टर प्रणाली के तहर किया जाएगा।
आजादी के 76 वर्ष के बाद हमारी महिलाएं बहुत सारी क्षेत्र में अग्रसर होकर अपना कदम जमा रही है। आज महिलाएं चांद पर पहुंच गई है। फाइटर, प्लेन उड़ा रही है, ओलंपिक खेलो में जीत हासिल कर रही है। बड़ी-बड़ी कंपनियोको चला रही है। राष्ट्रपति बनकर देश की बागडोर भी संभाल रही है। पर यह सब देखने के बाद भी ऐसा लगता है कि, भारत की जनसंख्या आबादी से तुलना करें तो केवल अंश मात्र ही चंद कुछ गिने-चुने महिलाएं ही उच्चता के शिखर पर पहुंच गई है ।क्योंकि भारत देश यह पितृसतात्मक समाज होने से हमेशा महिलाएं नीचे दबी हुई है। अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उसे हमेशा पुरुषों का सहारा ढूंढना पड़ता है। जब-जब स्त्री किसी स्थान में अपनी उपस्थिति दर्ज करती है, तब वह पहले अपनी संस्कृति, रीति रिवाज, परंपरा इसका वह ध्यान रखकर ही उसमें वह पैर रखना चाहती है।
भारत देहाती गांवों का देश है ,यहाँ अधिकतर देहाती गांव में रहने वाली महिलाएं होती है। वह जादा पढ़ी-लिखी नहीं होती है ,वह शिक्षण से कहीं दूर ही रही है, घर काम संभालना, पति बच्चों की सेवा करना, यही वह अपना परम धर्म समझती है। इसलिए जब साक्षरता का दर बहुत ही असाधारण था। 1951 में भारत की साक्षरता का दर 18.3% था। जिसमें महिलाएं केवल 9/प्रतिशत महिलाएं साक्षर थी। 2021 में यह अवसद 77.70 प्रति शत महिला साक्षर हुई। तब पुरुषों का औसत 84.70 था, तो महिलाओं की स्थिति जहां तक हो उतनी संतोषजनक नहीं थी, क्योंकि हम जानते हैं कि महिला कितनी पढ़ी लिखी होने पर भी खाना पकाने का काम महिलाओं को ही करना पड़ता है। लड़कियां बचपन से ही रसोई घर में खाना बनाने का कामकाज सीखती है ,परंतु लड़के तो रसोई घर से दूर ही रहते हैं ।
भारत की महिलाएं धार्मिक क्षेत्र में भी वह पुरुषों से पिछड़े ही रही है। हर एक क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व देखने के लिए मिलता है। इतना ही नहीं भारत की महिलाएं आर्थिक रूप से भी वह सक्षम नहीं है। न्यायालय और न्यायपालिका में कार्य करने वाली महिलाओं की संख्या एवं महिलाओं की भागीदारी तो बहुत कम देखने को मिलती है। भारतीय संसद में केवल 14 फ़ीसदी महिलाएं देखने को मिलती है। वैश्विक औसत भागीदारी देखा जाए तो 25 फ़ीसदी महिलाएं भारत की देखी जा सकती है। यह स्तर बहुत कम ही है, ग्रामीण आंचलिक पंचायती स्तरों पर अधिकांश महिलाओं को केवल नाम के लिए मुखोटे की तरह उनका इस्तेमाल किया जाता है। चुनाव जब आता है, महिलाओं को चुनाव में खड़ा किया जाता है, वह चुनाव तो लड़ती है जीती भी जाती है, लेकिन सत्ता तो पुरुष ही संभालते हैं ।सभी निर्णय पुरुष ही लेते है, यह वास्तविकता आज भी पंचायत राज्यों में देखने के लिए मिल रही है। क्योंकि महिलाएं अशिक्षित है, वह पढ़ी-लिखी नहीं है ।उसे पद को संभालना नहीं आता है, वह पद के लिए भी शत प्रतिशत योग्य नहीं है, लेकिन एक तिहाई आरक्षण के कारण उसे पद पर बिठाया जाता है, यह पंचायत राज्य की मजबूरी और देश की विसंगति है। न्यायालय में भी महिलाओं की संख्या संतोषजनक नहीं है। केवल 11% महिलाएं न्यायालय में कार्यरत है।
महिला आरक्षण विधेयक पास करने का और महिलाओं को 33% आरक्षण का मुख्य अर्थ यह है कि, भारत के लोकसभा संसद पदों पर और राज्यसभा की संसद पदों पर एक तिहाई महिलाएं ही हो। भारत की लोकसभा के कुल सीटों में 33% सीट पर महिला आरक्षण जिसको एक तिहाई आरक्षण कहा जाता है। अर्थात वर्तमान में लोकसभा की 543 सीटों में 33% सीटों पर महिलाएं हो जिसमें SC, ST, OBC महिलाओं का समावेश किया जाए।
महिला आरक्षण यह कल्पना सबसे पहले कौन की थी? सन 1931 में सरोजिनी नायडू ने सबसे पहले यह आरक्षण का विचार रखा था, की महिलाओं को आरक्षण देना चाहिए, वह भारत के राजनीति में बहुत ही पीछे है, उसे आगे लाना चाहिए, लेकिन जब यह विधेयक पास नहीं हो पाया। उसके बाद बहुत बार यह विधेयक चर्चा में लाया गया पर चर्चा के बाद विफल ही रहा। 1992 में 73 वां और 74 वां विधेयक संशोधन किया गया, और पंचायत में एक तिहाई आरक्षण विधेयक पास किया गया। 33% आरक्षण का प्रयोग भारत में सबसे पहले पंचायती राज्य में किया गया। सबसे पहले इसका प्रयोग कर्नाटक राज्य में किया गया, कुछ राज्य अपने स्वयं इच्छा से 50% आरक्षण भी महिलाओं के लिए दे रहे हैं। जैसे बिहार राज्य में 50% आरक्षण महिलाओं के लिए दिया गया है।
वर्तमान की स्थिति अगर जाने तो लोकसभा संसद में 543 सीटों में केवल 15% महिलाएं यानी की 78 महिलाएं हमारे सांसद है। राज्यसभा की स्थिति भी उसे कम ही है, केवल 14% महिलाएं सत्ता पर बैठी हुई है। राज्य विधानसभा में तो केवल 10% महिलाएं ही कार्यरत है। इससे भयानक स्थिति पिछले काल की थी। 1952 के सर्वे में देखा जाए तो भारत में लोकसभा में केवल पांच प्रतिशत यानी की 24 महिलाएं सांसद थी। और विश्व में भारत का स्थान अगर देखा जाए तो 24% महिलाएं राजनीति में है।
जब हम महिला विधायक आरक्षण के पक्ष में विचार करते है तो मुझे ऐसा लगता है की, भारतीय समाज महिलाओं के बारे में सकारात्मक सोच रखे, उन्हें आगे बढ़ने का सुअवसर देना चाहिए। भारत देश यह पितृसतात्मक देश होने से यहाँ महिलाएं दबी हुई है। वह हर क्षेत्र में पिछे रही है। उसे आगे आने का अवसर देना चाहिए। जब वह आगे आएगी तब वह मजबूत अपना संगठन बनाएगी, बहुत संख्याओं में वह सांसद बनकर आने के बाद वह अपने समस्याएं अपने मुद्दे समाज के सामने रखेगी।
इसका बदलाव हम पंचायत राज्य में, हमें देखने को मिल रहा है ।सबसे पहले पंचायत राज्यों में इसका प्रयोग किया गया तो, अधिकतर महिलाएं चुनकर आने लगी है, और वह अच्छी प्रकार से अपनी भूमिका निभा रही है। अपने पदों पर सुशोभित होकर सक्षमता से वह कार्य कर रही है। इतना ही नहीं कुछ महिला तो, पुरुषों से बेहतर कार्य कर रही है ।जैसे कि गांव में पानी, बिजली, सड़क, शिक्षण, गृह निर्माण यह सारी समस्याएं वह पूर्ण करने में लगी है। इसलिए एक नया दृष्टिकोण रखकर उसे आगे आने का अवसर देना चाहिए। तभी नया बदलाव आएगा। महिलाओं पर होने वाले अत्याचार कम होंगे, और महिला निर्भयता से वह समाज में जीएगी। और उसे भी जीने का संपूर्ण अधिकार देना चाहिए, तभी सच्ची आजादी मिल गई ऐसा हम समझेंगे, ऐसा मुझे लगता है।
यह विधेयक लागू होने के बाद क्या परिवर्तन आएगा, महिला विधेयक दोनों सदनों में पास होकर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ,जब इसे देश में लागू किया जाएगा तो देश के राजनीति में बहुत बड़ा परिवर्तन आ जाएगा। महिला जन प्रतिनिधित्व की संख्या ज्यादा होगी, नारी शक्ति आगे आकर भारत सरकार के साथ कार्य करने लगेगी, महिलाओं के उत्थान के लिए नई-नई योजनाएं ले जाएंगे। भारत की महिलाओं को मुख्य धारा में लाया जाएगा ,जिससे भारत की महिलाएं राजनीति में बढ़-चढ़कर प्रवेश करेगी। इतना ही नहीं महिला अपने कल्याण के लिए नए-नए कानून लाएंगे ।महिलाओं की साक्षरता बढ़ाने में मदद मिलेगी। कानून व्यवस्था में बदलाव आएगा, भ्रष्टाचार रहित शासन निर्माण होने में मदद होगी। महिलाओं को अन्य क्षेत्रों में कार्य करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाएगा,जिससे महिलाओं की संख्या दिन-दिन बढ़ने लगेगी। देश के योगदान में बढ़-चढ़कर कार्य करने के लिए महिलाओं को अवसर मिलेगा। महिलाओं के लिए नए-नए रोजगार निर्माण होंगे महिला निर्भयता से वह देश में घूमने लगेगी। पढ़ी-लिखी महिलाएं राजनीति में भी भाग लेकर चुनाव लड़ने के लिए वह आगे आएगी। हर क्षेत्र 50% तक महिलाएं दिखाई देगी ।पुरुष और महिला का जो समानता का उद्देश्य हैवह सफल होगा, सभी स्थानों पर 50% महिलाएं और 50% पुरुष दिखाई देंगे। आखिर महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देना ही जरूरी है। क्योंकि भारत देश की महिलाएं अभी पिछड़ी है,से और आगे आने का अवसर देने के लिए उसे सबसे अच्छी शिक्षा देना चाहिए,उसे आर्थिक स्वतंत्रता देनी चाहिए। सके साथ-साथ और भी बहुत सारे उपाय हैं, जो करना चाहिए। जिससे महिलाओं की उन्नति और विकास हो, इसके लिए समाज के लोग सब मिलकर प्रयत्न करना चाहिए।
लेखक: रमेश रंगराव मालचिमणे
वरिष्ठ हिंदी अध्यापक/कवि
श्री वर्धमान हिंदी हाईस्कूल जिला रायचूर कर्नाटक