भारतीय भाषाओं का सम्मेलन संपन्न
कानपुर – छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर के सीनेट हाल में दिनांक 13.03.2024 को आयोजित भारतीय भाषाओं के सम्मेलन में कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक ने कहा कि अनेक भारतीय भाषाएँ विलुप्त हो रही हैं, उन्हें बचाने की जरूरत है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के क्षेत्रीय संयोजक श्री जगराम सिंह ने कहा कि हर पल एक शब्द मर रहा है। भाषा को पारिवारिक संस्कारों में जीवित रखना होगा। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. श्रवण कुमार शर्मा ने अपने विदेश – भ्रमण के अनुभवों से भारतीय भाषाओं की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया। इग्नू , नई दिल्ली की प्रति कुलपति प्रोफेसर सुमित्रा कुकरेती ने कहा कि भाषाओं को बचाना है तो हम सबको कम से कम एक पुस्तक लिखना होगा। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रामनारायण द्विवेदी ने पाणिनीय व्याकरण के सूत्रों और अन्य संस्कृत श्लोकों का आधुनिक युग सन्दर्भों में अनुप्रयोग करते हुए भाषाओं के उन्नयन का नवाचार विकसित करने पर बल दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रवीण कुमार तिवारी ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में भाषा – परिवारों में फूट डालने के अंग्रेज विद्वानों के षड्यंत्र का पर्दाफाश करते हुए कहा कि भाषा मरती है तो वहाँ की संस्कृति मरती है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज के प्रोफेसर पतंजलि मिश्र ने तिवारी जी की बात को आगे बढ़ाते हुए स्वाधीनता सेनानियों के बीच भाषिक द्वन्द्व को रेखांकित करते हुए कहा कि हिन्दी के पक्ष में अहिन्दी भाषी नेता अधिक थे। जैसे गुजरात के सरदार पटेल। गांधीजी ने कहा कि यदि मैं तानाशाह होता तो भारतीय भाषाओं को स्थापित कर देता। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की प्रोफेसर गीता नायक ने ध्वन्यात्मक आधार पर भाषाओं में साम्य स्थापित करते हुए शब्दों की इतिहास – यात्रा के भूगोल को नापने की कोशिश की। अजित कुमार राय ने वृहदारण्यक उपनिषद् के साक्ष्य से भाषा को अन्तिम ज्योति बताया और संस्कृत, हिन्दी, मलयालम, उड़िया और बांग्ला भाषाओं तथा भोजपुरी, कन्नौजी आदि बोलियों का प्रवृत्ति गत वैशिष्ट्य रेखांकित करते हुए उनकी एकात्मता को संलक्ष्य करते हुए भारतीय भाषाओं के अन्तर्मुखी आध्यात्मिक चेतना को उद्घाटित किया। संगोष्ठी में शिलांग आदि सुदूर प्रान्तों से विद्वान आए थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के तीन प्रोफेसर आए थे। प्रोफेसर वी डी पाण्डेय ने कहा कि भाषा एक आदत है जो अपरिहार्य है। डॉ विकास यादव ने अतिथियों का स्वागत किया और ऋचा वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। प्रेरणादायक आयोजन हेतु कवि संगम त्रिपाठी संस्थापक प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा ने बधाई दी है।