दस सप्तकी अनुपम कृति
जमशेदपुर की वरिष्ठ साहित्यकार ‘प्रतिभा प्रसाद ‘ कुमकुम, साहित्य जगत क़ी सशक्त हस्ती हैं l उनके द्वारा लिखित पुस्तक ‘ दस सप्तकी’ का मैंने अध्ययन किया है
यह पुस्तक प्रतिभा दीदी के जीवन भर क़ी उपलब्धि का जैसे प्रमाण पत्र हो !
दस सप्तकी में शहर के और बाहर के अनेक कवि कवित्रियों की शुभकामना संदेश है जों उनके सफल रचनाकार होने का परिचायक हैl
पुस्तक में कुल तीन कहानियां, एक आलेख और कुछ भावनात्मक कविताएं हैं l
पहली कहानी ‘यतो धर्म: ततो जय’ है l
इस कहानी में उन बच्चों का, खासकर लड़कियों के बारे में जिक्र है जिन्हें घर से बाहर की दुनिया में निकलने पर,किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है,इसका जिक्र है l कुछ लोभी, कामुक एवं गैर सामाजिक भेड़िए उन्हें अपने जाल में फँसाने को घात लगाए बैठे रहते हैं और मौका मिलते ही अपनी मंतव्य पूरी करते हैं l पहले तो उनकी मदद करते हैं, झूठी सहानुभूति दिखाकर उनका विश्वास जीतने की कोशिश करते हैं और फिर अपनी मंतव्य पूरी करते हैं l पर
अगर बच्चे सतर्क और सावधान हों तों इन कामुक भेड़ियों को मुंह की खानी पड़ती है..
दूसरी कहानी ” मन का क्या ” है जों आज के यथार्थ को दर्शाती है,
कुछ सच्चाई तो कुछ हास्य भरी इस कहानी में रचनाकार ने बताया है कि मनुष्य की सोई हुई कोई भी भावना, चाहे वह प्रेम ही क्यों ना हो, उम्र के किसी पड़ाव में जागृत हो सकती है और किसी सीमा तक जा सकती है जिसे बांधना या पूर्णविराम देना कठिन हो जाता है..
इस कहानी की नायिका बहुत परिपक्व है वह अपनी सूझबूझ और बुद्धिमत्ता से एक उम्र दराज मजनू को रास्ते पर ले आती है और उसे दिगभ्रमित होने से बचा लेती है l
तीसरी कहानी समाज के बहुत ही घिनौने मुद्दे बलात्कार’ के विषय में है- इस विषय पर लोगों के अलग-अलग मत होते है l
जैसे कभी महिलाओं का स्वच्छंद विचरण, अर्धनग्न परिधान, उनकी शारीरिक बनावट,तो कभी पुरुषों क़ी मानसिकता, मनोरंजन या अहंकार lको कारण माना जाता है……..
नारी यानी कि समाज और परिवार की धूरी..
पर मैं आपके दिल से पूछती हूँ– क्या सचमुच नारी को घर या समाज में उचित सम्मान मिलता है?
कहीं कम तो कहीं ज्यादा उनको हर क्षेत्र में अपमानित किया जाता है और उनका शोषण होता है l एक मानसिक रोग ग्रसित ब्यक्ति के लिए एक अबोध बच्ची या प्रोढ़ा स्त्री में फर्क कर पाना कठिन हो जाता है.. उसे तो बस जीत हासिल करनी होती है..
चौथी रचना में कुमकुम दीदी ने देश क़ी स्वतंत्रता क्या होती है इस विषय पर अपना चिंतन व्यक्त किया है..
सन् १९४७ में हमने स्वतंत्रता हासिल की, पर भारत हिंदू राष्ट्र घोषित ना हुआ.. जिस भारत माता की स्वतंत्रता हासिल करने को
अनेक देशप्रेमी शहीद हुए, उस माटी को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता प्राप्त ना हो पायीl
पर अब बदलाव शुरू हुआ है, हम सनातनियों को अपनी पहचान मिलने लगी है l सनातन वह धर्म है जो ‘वासुधैव कुटुम्बकम ”के विचार को आत्मसात कर जीवनशैली अपनाती है और हर धर्म का समान रूप से सम्मान करती है l
प्रतिभा दीदी की कवितायें बहुत ही संवेदनशील, सरल किन्तु गहरी हैं, कुछ दोहे तों कुछ छंद हैं जिन पर अपने विचार मैं अगली बार प्रस्तुत करूंगी..
इति!!
पूनम सिन्हा “भावशिखा”