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मधुमय रस लहरा दे

नव-लय-छंद अलंकृत जननी
मधुमय रस लहरा दे।
वेद रिचाओं के आखर से
रचना कर्म करा दे।।

शब्द अर्थ का बोध नहीं है
ना भावों की गहराई।
बुद्धि विवेक जगाकर उरमें
ललित कला लहराई।।

दूर क्षितिज के रम्यछटा से
अंधकार बिलगानी ।
कलम पकड़ कर लिखा रही हो
सुबरन वर्ण-नियामी ।।

भ्रमित हुआ हूं समझ नहीं है
क्या लिख कर क्या गाऊं ।
कैसे सुर सरिता के संगम
रचना को नहलाऊं ।।

आस हमारी वीणा वादिनि
करो पूर्ण अभिलाषा।
काट विवसता के बन्धन सब
अन्तस भर दो भाषा ।।

ज्योतिर्मय ‘जिज्ञासु’ पंथ हो
ऐसा कर्म करा दे ।
नव-लय-छंद अलंकृत जननी
मधुमय रस लहरा दे ।।

कमलेश विष्णु सिंह “जिज्ञासु”
9140896333
9454348606
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