जय जय श्री राम।
जय जय श्री राम, भगवान की यह घोषणा है जब जब आतातायी शक्ति धर्म को क्षति पहुचायेंगे तब तब वे अपने किसी दूत भेज कर या स्वयं आ कर धर्म की पुनर्स्थापना करेंगे। यह मृत्युलोक है यहां व्यक्ति को सुमति कुमति कुछ भी कर्म करने की स्वतंत्रता ईश्वरीय विधि का विधान है। बहुत सारे लोग इन सवालों में भ्रमित रहते हैं की जब मंदिर टूटने का दौर था तब ईश्वर क्यों नहीं प्रकट होकर रोकते थें..? यदि वे ऐसा तुरंत करते तो *दिव्य प्रेरक कहानियाँ* का उद्भव कैसे होता। यदि ईश्वरीय लीलाओं का दिव्य प्रेरक कहानियाँ न हो तो भविष्य में आदर्श, नैतिकता, मानवता, धर्म को स्थापित रखने का प्रेरणा कौन देता..? *दिव्य प्रेरक कहानियाँ* का ही तो संग्रह है शास्त्र, वेद, पुराण, उपनिषद..! जिसके पठन पाठन से व्यक्ति के हृदय निर्मल होता है और वह मनवांछित फल को प्राप्त करता है।
धन्य है सूबे के मुखिया माननीय श्री योगी आदित्यनाथ जी और राष्ट्र के प्रधान माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी जिनके द्वारा समय ने अविष्मरणीय ऐतिहासिक कार्य करवाया और अयोध्या में त्रेताकालीन वैभव को कलयुग में पुनः दोहराया।
व्यक्ति जब सर्वस्त्र समर्पण कर देता है विश्वात्मा सर्व शक्तिमान के प्रति तो उसी क्षण से उसकी संपूर्ण जिम्मेदारी अनंत कोटि ब्रह्माण्ड के अधिनायक, ब्रह्मांडेश्वर, विश्वंभर उठा लेते हैं।
वास्तव में धर्म/शास्त्र से ही जीवन में नियम का निर्माण होता है। नीयम पालन से जीवन में संयम/धैर्य का विकास होता है। इस संयम/धैर्य से अनुशासन का निर्माण होता है। अनुशासन से मर्यादा का निर्माण होता है। मर्यादा से संस्कार का निर्माण होता है और यह संस्कार ही उन्नति के मार्ग प्रशस्त करते हैं। वेद पुराण उपनिषद के तात्विक ज्ञान बगैर तमाम डिग्री डिप्लोमा थेथर के फूल की भांति परागहीन, सुगंधहीन है। वेद पुराण उपनिषद के ज्ञान का अनुभव कोई सामर्थ्य गुरु और निरंतर स्वाध्याय से ही संभव है।
डा. अभिषेक कुमार
संस्थापक अध्यक्ष सह मुख्य प्रबंध निदेशक
दिव्य प्रेरक कहानियाँ मानवता अनुसंधान केंद्र