पुस्तक समीक्षा यमराज मेरा यार (हास्य व्यंग्य काव्य संग्रह) समीक्षक-संजीव कुमार भटनागर
पुस्तक समीक्षा
यमराज मेरा यार (हास्य व्यंग्य काव्य संग्रह)
समीक्षक-संजीव कुमार भटनागर
डॉ. सुधीर श्रीवास्तव द्वारा रचित काव्य संग्रह “यमराज मेरा यार” एक अनूठी साहित्यिक प्रस्तुति है, जो अपने शीर्षक से ही पाठकों की जिज्ञासा को जागृत कर देता है। आमतौर पर यमराज को मृत्यु, भय और संहार का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इस संग्रह में यमराज एक अलग ही रूप में प्रस्तुत किए गए हैं – मानो वे कवि के सखा हों, जिनसे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर संवाद किया गया हो।
डॉ. सुधीर श्रीवास्तव की भाषा सहज, प्रवाहमयी और व्यंग्यात्मक चुटकी से भरपूर है। वे गहरी बातों को भी हल्के-फुल्के शब्दों में कहने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। कहीं-कहीं पर दार्शनिकता का भी पुट मिलता है, जो कविता को और अधिक प्रभावशाली बनाता है।
“यमराज मेरा यार” संग्रह केवल मृत्यु और यमराज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन, समाज, राजनीति, नैतिकता और मानवीय रिश्तों की पड़ताल करता है। कुछ प्रमुख विषय जो इस संग्रह में उभरकर आते हैं:
कवि मृत्यु को भयावह नहीं बल्कि एक अनिवार्य सत्य के रूप में देखता है। यमराज से वार्तालाप करते हुए, वह मृत्यु के प्रति आम धारणा को चुनौती देता है और उसे सहजता से स्वीकार करने की बात करता है।
कविताओं में सामाजिक विसंगतियों और राजनीति पर कटाक्ष भी खूब देखने को मिलता है। भ्रष्टाचार, सत्ता का खेल और आम आदमी की पीड़ा को तीखे व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
कवि बताता है कि जीवन को जीना ही सबसे बड़ी कला है। यमराज को मित्र के रूप में चित्रित करके वह संदेश देता है कि मृत्यु से डरने की बजाय हमें जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बनाना चाहिए।
संग्रह में हास्य और व्यंग्य का ऐसा संतुलन है, जो पाठक को गुदगुदाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर करता है। यह शैली डॉ. सुधीर श्रीवास्तव की लेखनी की खासियत है।
“यमराज मेरा यार” शीर्षक ही इतना दिलचस्प है कि पाठक इसे पढ़ने के लिए उत्सुक हो जाता है।
यह संग्रह गंभीर विषयों को भी हास्य और व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत करता है, जिससे कविताएँ बोझिल न होकर मनोरंजक लगती हैं।
समाज और व्यवस्था पर प्रहार करने वाली कविताएँ बहुत प्रभावी हैं।
हास्य-व्यंग्य के बीच गहरे जीवन-दर्शन को पिरोया गया है, जिससे पाठक आत्ममंथन करने को प्रेरित होता है।
“यमराज मेरा यार” केवल एक काव्य संग्रह नहीं, बल्कि एक अनोखी साहित्यिक यात्रा है, जिसमें मृत्यु, जीवन और समाज की सच्चाइयों को हास्य और व्यंग्य के रंगों में प्रस्तुत किया गया है। डॉ. सुधीर श्रीवास्तव की लेखनी में एक विशिष्ट चातुर्य है, जो कठिन से कठिन विषय को भी सहज बना देती है। यह संग्रह निश्चित रूप से हिंदी साहित्य में व्यंग्य-काव्य की एक उल्लेखनीय कृति के रूप में अपनी पहचान बनाएगा।
“यमराज से दोस्ती करके, ज़िंदगी को बेहतर जीने का नया नजरिया देने वाला यह संग्रह हर पाठक को अवश्य पढ़ना चाहिए!”