रानी की मजबूरी
रानी की मजबूरी
अरि ओ रानी कहां मर गई है,इधर आ। ये कपड़े अभी तक यहीं पड़े हुए हैं। अभी तक धुले भी नहीं हैं। और ये झाड़ू पोंछा क्या तेरा बाप लगायेगा ? एक बेरुखी भरी कर्कश आवाज में दीपिका ने कहा।
रानी – जी मां जी! बस मैं अभी कर देती हूं। तभी दूसरी ओर से आवाज आई –
ओ रानी क्या कर रही है? मुझे दफ्तर जाना है,देर हो रही है। तूं अभी तक पड़ी पड़ी क्या कर रही है? तूने मेरा टिफिन तैयार किया है या नहीं। कम्बख़त यदि काम में तेरा मन नहीं लगता है। तो कल तूं अपना हिसाब कर लेना,समझी। कल से काम पर मत आना। मनहूस कहीं की, बेहया। एकदम डांटते हुए महादेव ने कहा।
इतनी सब अपमान जनक बातें प्रतिदिन सुनती परन्तु शालीनतापूर्वक जी बाबू, जी मां जी के जबाब से संबोधन करती है।
रानी – जी बाबू जी, माफ़ करना। मां जी के पैरों की मालिश कर रही थी। वह सारी रात सोई नहीं। उनको तेज बुखार था। मैं अभी तैयार कर देती हूं।
महादेव – अरे बज्जाद मुझे काम गिना रही है। ये तो तेरा फ़र्ज़ है। इस काम के सेवा करने के तुझे पर्याप्त पगार दी जाती है। और ऊपर से तुझे भर भोजन, तेरे बच्चे को दूध भी मिलता है। और हां अगर इसी तरह ढीला भी ढवासी करती रही। तो बच्चे के दूध का इंतजाम बाहर कर लेना। मुझे कोई तेरा कर्ज नहीं देना है। मुझे और मिल जाएंगे, तेरे जैसे दो टके के नौकर। अपनी औकात में रहना सीख ले।(इतनी बेइज्जती मिलने के बाद भी रानी का जवाब वहीं)
रानी – जी बाबू जी।
दीपिका (पुनः चीखते हुए)- अरी कहां मर गई चुड़ैल! मेरे कपड़े नहानी में नहीं पहुंचाए। मैं कब से यहां इंतजार में खड़ी हूं।
रानी – जी मां जी अभी लाई। बाबू जी आफिस के लिए तैयार हो रहे थे। उनके लिए टिफिन तैयार कर रही थी।
दीपिका – अरे मैं खड़ी खड़ी इंतजार कर रही हूं। मेरे कपड़े क्या तेरा खसम लाएगा।
रानी – जी मां जी मैं अभी लाई।(दौड़कर कपड़े देती है।)
दीपिका – वहां साहब की तैयारी कर रही थी। या उनसे नयन मटक्का कर रही थी। और हां तेरा बच्चा काम में रुकावट पैदा करता है। कल से उसे यहां लेकर मत आना। कलमुंही कहीं की।
रानी – माफ़ करना मां जी। मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती। मेरे संस्कारों में ऐसा नियम कहीं नहीं है। और मां जी,राजू अभी दो बरस का ही है। घर में मेरे अलावा उसका कोई नहीं है। किसके भरोसे छोड़ूंगी।
दीपिका – अरे तूने जन्म दिया है। तो ये तेरी जवाबदारी है। चाहे जहां छोड़ आना। परन्तु यहां काम नहीं रुकना चाहिए। सड़क किनारे बैठा दिया कर किसी के पास। फिर शाम को वापस जाते समय ले जाया कर। घर जाकर खूब लाड़ करना। चाटते रहना समझी ना।( इतनी बेरहमी से एक सांस में कह डाला। वह बेचारी ऐसे सुनती रही। मानो उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता।)।
मैं अपने भैया भाभी के घर अपने ऑफिस से किसी काम से आया था । मैं यह सब ख़ामोश देख रहा था। घर के सब लोग रानी के साथ कितना अपमानजनक और अभद्र व्यवहार करते हैं। फिर भी वह बड़ी सरलता और शालीनता का परिचय देती है। उसके चेहरे पर इतना अपमानजनक व्यवहार सहन करने के बाद भी सिकन तक नहीं आती है। वह बड़े प्यार से जवाब देती है। और फिर वह तत्काल अपने 2 वर्ष के साथी बच्चे की ओर देखकर मुस्कुराने लगती है। पुन:अपने काम में लग जाती है। मुझे यह सब देखते-देखते लगभग एक सप्ताह निकल गया था । मैं सोच रहा था, कि ऐसी क्या मजबूरी है। इस युवति की जो इतना सब सुने जा रही है। वो भी बिना कोई शिकवा शिकायत किए। मैं भैया भाभी जी से इस संबंध में कुछ भी पूछ नहीं सकता था। उनके स्वभाव से मैं भलीभांति परिचित था। ना उस लड़की से उसकी जानकारी ले सकता था। क्योंकि वह बहुत ही स्वाभिमानी दिख रही थी। बड़ी कसमकश के बीच मैंने एक दिन ठान ही लिया। कि आज इसकी जानकारी लेकर ही रहूंगा। और वह अवसर आ ही गया।
एक दिन अचानक भैया भाभी को एक महफ़िल में जाना पड़ा। मैंने सोचा यही सही मौका है । उससे उसके बारे में बात करने का। मुन्ना मेरा भतीजा घर पर ही था । ठंड का मौसम था इसलिए भैया मुन्ने को रानी के पास रानी के भरोसे छोड़ गए थे। मैंने बहुत कोशिश की, पर रानी ने मेरी छाया भी उस पर नहीं पड़ने दी। भैया भाभी को आने में देर हो गई लगभग रात के 9:00 बज रहे थे। रानी ने सारा काम निपटा लिया । मुन्ना को बिस्तर पर सुला दिया। फिर अपने उस छोटे से बच्चे को लिया और जाकर बगीचे में बैठ गई। अमावस की काली रात और उस पर ठंडी हवा चल रही थी। जैसी तैसी बनी वह सुकडी सी अपने आंचल में बच्चे को छुपाए, एक बरसाती के सहारे बैठी थी। मुझे उसे पर तरस आ रहा था। मेरे बार-बार बोलने पर भी वह अंदर नहीं आई। बस किसी तरह उस बच्चे को ठंड से बचने का अथक प्रयास कर रही थी। मैं समझ गया कि संकोच के कारण वह अंदर नहीं आ रही है। या भय और स्वाभिमान के कारण कुछ मांग भी नहीं रही है। अगर मैंने बगैर मांगे दे दिया, तो भाभी उसकी जान ले लेगी।
जब मुझसे रहा नहीं गया । तो मैंने भी वही भैया भाभी वाला तरीका अपनाया। क्योंकि किसी तरह से उसे और उसके बच्चे को ठंड से बचाना था। मैंने भी उसे ज़ोर से आवाज दी। अरी ओ रानी कहां चली गई । यहां मुन्ना कब से रो रहा है। उसे भूख लग रही है। इधर आ जल्दी से। शायद उसने सुना नहीं या सुनकर अनसुना कर दिया था। एक बार मैं फिर और जोर से चिल्लाया भैया के अंदाज में , क्यों री रानी कहां मर गई। ऐसा करने के लिए मुझे अपने सीने पर पत्थर रखना पड़ा। इतना सुनते ही वह एकदम भागी भागी आई। बच्चे को बरसाती में छुपाए आकर सामने खड़ी हो गई। और बोली –
रानी – जी साब जी गलती हो गई । देर से आई। (उसका इतना बोलना हुआ कि मेरी आंखों में भर आए।)
राकेश :- फिर भी मैंने मन को कड़ा करके उसे बोला – देखो मुन्ना रो रहा है। शायद से भूख लगी दूध पिलाकर सुला दो। तुम्हें समझ नहीं आता । इतनी रात हो गई है। इस बात को मैंने इतना कड़क मन करके बोला। परंतु दया के कारण मुझे डांटना भी नहीं आया।
रानी:- बड़ी शालीनता से – जी साब जी। अभी देखती हूं। बड़े साहब नहीं आए हैं, अभी। जाड़ा लग रहा था भइयू को। इसलिए पेड़ के नीचे बैठी थी। माफ़ करना।
राकेश:- तुझे अपने बच्चे की पड़ी है। जा मुन्ने को सुला दे। बहुत कड़क स्वर में कहा मैंने।(बड़ा कठोर होना पड़ा। उसने बड़ी सरलता से बोला-)
रानी:- जी साब जी।
उसने अपने साथ वाले बच्चे भइयू को वहीं बरसाती में लपेटकर फर्श पर लिटा दिया। और अंदर मुन्ना के पास चली गई। उसने मुन्ना को दूध पिलाया। और एक कंबल के साथ मुन्ने को लेकर बाहर आ गई। अपनी गोद में मुन्ना को लिटा कर दरवाजे पर बैठ गई। वहीं बाजू में फर्श पर पड़ा था । रानी का भइयू ठंड से सिकुड़ कर रो रहा था। और सुकपुका रहा था। वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी। आधी बरसाती बिछा रखी थी और आधी से भैइयू को ढक रखा था।
अब लगभग रात की 11 बज चुके थे। भैया भाभी आए! और उसे बुरी तरह लताड़ने लगे।
दीपिका :- क्यों री चुड़ैल तुझे समझ नहीं पड़ती। कितनी तेज ठंड है।और तूं उसे दरवाजे पर लेकर बैठ गई। अगर मेरे बच्चे को कुछ हो जाएगा ठंड में। तो क्या तेरा बाप ठीक करेगा। वह चुपचाप सुनती रहती है। कुछ नहीं कहती है। बस इतना कहती है । मां जी मुन्ने को कुछ नहीं होगा। मैंने उसे अच्छे से छुपा रखा है । यह देखकर मैं अवाक सा रह गया। भाभी को उसका बच्चा नहीं दिख रहा है। जो जमीन पर पड़ा रो रहा है। केवल अपना बच्चा दिख रहा है। वह बोली रानी से –
दीपिका:- ठीक है जा किचन में रोटी पड़ी है। ले ले। और चली जा। हां सुबह जल्दी आ जाना समझी । जा निकल जल्दी से।
रानी:- जी मां जी।(उसने कहा)
रानी रोटी लेकर बच्चे को उठाकर गोद में लेकर रात को 12:00 बजे घर से निकल जाती है। ठीक उसी तरह से जैसे कि दिन में जा रही हो। अमावस्या की काली रात वो भी बारह बजे निर्दयी लोगों ने एक लड़की को निकाला। शर्म भी नहीं आई। भाभी ने एक बार भी नहीं सोचा, आधी रात को अकेली लड़की कहां जाएगी।
मैंने सोचा ! मैं उसे उसके घर तक छोड़ दूं। पर मन ही मन यह डर लग रहा था। कि पता नहीं भाभी क्या सोचने लग जाए। मुझे अपनी फिक्र नहीं थी। परन्तु उस बेचारी पर कौन सा लांछन लगा दे। उसके चरित्र के ऊपर उसकी पवित्र पवित्रता पर कौन सा दाग लगा दे। क्योंकि उसकी(भाभी )घटिया सोच मैं जान चुका था। रानी के यहां घर से अपने घर की ओर चले जाने के बाद । और भाभी के घर पर इन लोगों की सोते ही। मैंने उसका पीछा किया । तो देखा कि शहर के बिल्कुल बाहर वह जाती चली गई। बिल्कुल सुनसान स्थान पर पड़ी एक नाली की पुलिया के पाइप में घुस जाती है। वहीं एक कचरे की ढेर भी था। दूर सड़क से आती जाती गाड़ियों की लाइट की रोशनी में रुक रुक कर थोड़ा थोड़ा दिखाई देता था। कुछ देर के लिए तो मैं डर गया। इतने एकांत में रहती थी वो। फिर देखा वह बरसाती से पुलिया के दोनों सिरों (मुहानों)पर पर्दे ऐसे लगा रही थी। (बंद कर रही थी) मानो अपने महल को सजा रही हो। तारीफ की बात तो वह थी ।कि वह उसमें भी खुश थी। वह उसके बाद गीत गुनगुना कर अपने भइयू को दाल रोटी खिलाने के बाद उसे लोरी सुनाकर सुला देती है। और फिर वह स्वयं खाने बैठने वाली होती है। तभी वहां एक पिल्ला कूं कूं करता आ जाता है । रानी को समझने में देर नहीं लगती है। कि वह पिल्ला भी भूखा है। और उसमें उसने आधी रोटी पिल्ले को खिला दी। फिर उसे भी अपने बगल में सुला लेती है। दोनों बच्चे चैन से ऐसे सोते हैं। जैसे मानो वह अपनी मां के पास सो रहे हों । मैंने रानी को ऐसा एहसास बिल्कुल नहीं होने दिया। कि मैं उसका पीछा कर रहा हूं। मैं सोचता रह गया। कि एक संसार ऐसे लोगों का भी है। यह सोचते सोचते पता नहीं कब सुबह हो गई। मैं यह देखकर हैरान रह गया। जहां रानी निडरता से रात गुजार रही थी। वहां तो दूर-दूर तक इंसान तो ठीक है। जानवरों का भी बसेरा नजर नहीं आ रहा था। मुझे लगा कहीं वह मुझे देख ना ले। मैं शीघ्र ही वहां से निकल पड़ा वापस घर की ओर। मैंने भाभी से उसका परिचय जानकारी ली तो हृदय ने झकझोर दिया। मुझे बहुत अधिक कष्ट हुआ। और मैंने अपने अंतस में निर्णय लिया।
दूसरे दिन रानी पुनः अपनी नौकरी पर आ गई । वह भी ऐसे जैसे कल कुछ हुआ ही नहीं। वह अपने उस बच्चे के साथ खुश और आज तो साथ में वह पिल्ला भी आया था । परंतु उसने वहां बाहर गेट पर ही उसे पिल्ले के कान में कुछ कहा । और तारीफ की बात तो यह है कि वह पिल्ला भी जैसे सब कुछ समझ गया । अंदर ना आकर वहीं गेट के पास बाहर एक तरफ बैठ गया। रानी के बाहर आने का इंतजार करने लगता है ।
(रानी का प्रवेश और भाभी का उसे दुत्कारना शुरू हो गया)।
दीपिका:- आ गई कलमुंही ।इतनी देर क्यों हो गई। जरा जल्दी आ जाती तो क्या बिगड़ जाता। अब आ ही गई है,तो जल्दी से चाय बना ला जा । ( मैं रोज की भांति सुनाता रहा और अंदर चला गया। जाकर अपना सामान एकत्र कर समान लेकर नीचे आया।) मुझे सामान लेकर बाहर जाने की तैयारी में देखा तो भाभी ने बोला- दीपिका:- अब तुम कहां जा रहे हो। वह भी बगैर कुछ कहे ।
राकेश:- मैंने भाभी से कहा – मैं अपने घर जा रहा हूं भाभी जी।
दीपिका:- तेरा तो काम था ना? हो गया क्या तेरा काम ? भाभी ने पूछा।
राकेश:- मैंने जवाब दिया हां हो गया।
दीपिका:- तू तो दो महीने के लिए आया था । किसी चीज की खोज के लिए ना ।
राकेश:- मैंने कहा – हां भाभी मैं 2 माह के लिए आया था। परंतु मेरा काम कुछ ही दिनों में पूरा हो गया है । अब मुझे कोई खोज नहीं करना है । दरअसल में तुम जैसे लोगो के इस संसार में किसी को सुख और सम्मान तो सपने में भी नहीं मिल सकता। मैंने कहा- धिक्कार है तुम्हारे इस संसार को। जो संसार किसी को दुख के अलावा और कुछ नहीं दे सकता।
दीपिका:- यह क्या कह रहा है तूं।
राकेश:- हां भाभी जी मैं सच कह रहा हूं । धिक्कार है ऐसे मानव को जो मानव जीवन को पैसों से तौलता है। जो पैसों के अभिमान में सब भूल जाता है। कि गरीब इंसान नहीं होता है। जो लोग गरीब की मजबूरी को पैसों से तौलते हैं ना । उन्हें इंसान नहीं समझते, उनके यहां तो सांस लेना भी पाप है। समझे। इसलिए मैं जा रहा हूं । और पता है रानी को भी ले जा रहा हूं। इसी तारतम्य में मैंने रानी से पूछा- रानी इस बच्चे का पिता कौन है? क्या करता है? कहां रहता है?
तब रानी ने जो जबाव दिया मेरे पैरों के तले की जमीन खिसक गई भाई साब। रानी ने कहा –
रानी:- साब रहने तो दो क्या फायदा हम खुश हैं।
मैंने जब उसे जबरन बताने कहा तब उसने बताया-
रानी:- बोली साब! मैं अनाथ हूं। और ये जो बच्चा है ना मेरा भइयू। मेरा भाई मुझे इतना सा था। जब मैं भूख से तड़प रही थी। तो कचरे के डिब्बे में कुछ खाने के लिए खाना ढूंढने गई थी साब । तब उसी डिब्बे में मिला था। तब से मेरे साथ रहता है। यह मेरा सहारा है। और मैं इसका सहारा हूं। लगभग दो बरस से हम भाई बहन साथ हैं साहब। और आज रात एक छोटू मिल गया है। वह गेट के बाहर बैठा है। शाम को मेरे साथ जाएगा। अब हम तीनों साथी हो गये हैं। और हल्की नम मुस्कराकर बोली – साब कुछ ग़लत कह दिया हो तो माफ़ कर देना।
इतना सुनते ही राकेश से रहा नहीं गया। उसने रानी को उस बच्चे सहित गले लगा लिया। और बोला- तीन नहीं बहिन हम चार हो गये हैं। चलो हम अपने घर चलते हैं। वहां माता पिता इंतजार कर रहे हैं।
शिक्षक दिनेश जैन राही बांदकपुर जिला दमोह मध्य प्रदेश