बुनियाद गहरी, पक्की, दमदार चाहिए
बुनियाद गहरी, पक्की, दमदार चाहिए
रास्ते बहुत हैं बढ़ते जाने के लिए,
मंजिलें बहुत हैं चढ़ते जाने के लिए,
किन्तु मंजिल को मजबूती चाहिए,
मजबूती की गहरी पहचान चाहिए।
अट्टालिका जो गगनचुंबी चाहिए, तो
बुनियाद गहरी, पक्की, दमदार चाहिए।
हैं जहां जितना झाड़- झंखाड़ ,
भूमि को निस्तार उससे चाहिए;
प्रकृति भूमि की भिन्न-भिन्न,
नींव की गहराई का भी आकलन चाहिए।
देश की प्रगति को शैक्षिक उत्थान चाहिए,
शैक्षिक उत्थान को नींव गहरी, दमदार चाहिए।
गुणवत्ता यों न बढ़ती जाए, एन्द्रजालिक
ज्यों इन्द्रजाल दिखाए, छड़ी जादू की घुमाए।
है क्षमता सीखने की कितनी, ले आधार
इसका ,वर्गविभाजन निष्पक्ष कक्षा का
अवश्य होना चाहिए; परीक्षातिथि निर्धारण
भी पृथक्-पृथक् अवश्यमेव होना चाहिए।
मूल्यांकन महनीय सोपान सुशिक्षा का
विषय- प्रकृति- अनुकूल समयनियोजन चाहिए।
रहेगी अन्यथा व्यवस्थाजन्य अव्यवस्था सतत
प्रकट या लुप्त किं वा समझ को दुरूह !
शिक्षा में सुधार का कदम ही
मूल्य थामता हाथ होगा बेशक;
रह जाएँ खामियाँ विद्यार्थी में तो
गुरु शिष्य अभिभावकप्रभृति को
सत्य को हृदय से स्वीकार करना चाहिए।
श्रेयस्कर आस्वाद, मिठास जीवन का,
लाभ शिक्षा का, मिल न पाएगा वरना !
भाषा हिन्दी औ संस्कृत की ओर,
मूल संस्कृति की ओर ,
बढ़ता रुख सुलझाएगा निःसंदेह,
गिरते मूल्यों की गुत्थियाँ।
श्रेयस्कर मंजिल तभी होगी
हासिल, सही अर्थों में।
अक्षयलता शर्मा