कविताई
कविताई
कहते हैं पाठक निराले,
“अर्थ बोध हुआ तो कविता है।”
कहता है कोई-
“अर्थबोध हुआ
तो कैसी कविता ?”
कह रहा कोई,
कविता एक बनाई है-
“आए घनश्याम,
गरजे घनश्याम,
बरसे घनश्याम,
भीगे घनश्याम।”
अर्थ बोधगम्य हुआ
यही कविताई है?
बोले पाठक निराले-
“चाँद तारों ने मिल
रात सजाई है,
कि श्याम संग
श्यामा मुसकाई है।”
क्या बात समझ आई है ?
यह कैसी कविताई है ?
मिला उत्तर,
बोल उठे मर्मज्ञ-
“रसपान हुआ
यही कविताई है।”
“अर्थबोध के लिए अपेक्षित है
भाषिक ज्ञान, सहृदयता,
काव्यरसिकता, मर्मज्ञता।
आखिर कविता, काव्यप्रतिभा,
वाग्मिता की अधिकाई है;
विद्वजन की विगलित प्रभुताई है।
यही तो कविताई है-
बात बोधगम्य हो सहज
मन भाई है,
अन्तस में सानन्द
उतर आई है,
छाई है!
हर्ष से, हास्य से,
उद्वेलन या गलन से
सीख दे पाई है।
इन्हीं के परिप्रेक्ष्य में
लघुता- गुरुता धरे कविताई है।
यही काव्य-गरिमा या लघुताई है।”
बोले पाठक निराले-
“गजब!!”
मतवाले पाठक मर्मज्ञ
के मुख मुस्कान घिरि,
हुआ वाद-विवाद- विराम;
समुझि परि कविताई है।
अक्षयलता शर्मा