गया जी में पिण्डदान : एक वृहद कार्यक्रम
गया जी में पिण्डदान : एक वृहद कार्यक्रम
हमारे हिन्दू सनातन धर्म में श्री गया जी तीर्थ में पितरों के लिये पिण्डदान, श्राद्ध व तर्पण एक बृहद कार्यक्रम होता है। जिसके अन्तर्गत ननिहाल, ददिहाल, रास्ते में पड़ने वाले तीर्थ स्थानों यथा बिठूर, प्रयाग राज और वाराणसी तथा गया जी में संकल्प के पश्चात फल्गु नदी, पंचशील विष्णुपद, प्रेतशिला, रामकुंड रामशिला, कागबली, सीताकुंड, धर्मारण्य वैतरिणी और अक्षयवट आदि स्थानों में किए गए पिंडदान के पश्चात सुफल प्राप्त कर तथा वापसी में नैमिषारण्य में स्नान दान और दर्शन कर वापस निवास स्थान में घर में हवन एवं कन्या भोज तक के कार्यक्रम सम्मिलित होते हैं।
गया जी में किया जाने वाला पिंडदान बृहद गया पिण्डदान का एक अंश मात्र विशेष कार्यक्रम होता है।
तत्पश्चात् पूरे समाज को ब्रह्म भोज करवाने का आयोजन समस्त पितरों को सदा के लिये तृप्त कर देता है और वह मोक्ष प्राप्त करते हैं।
पञ्चकोशं गयाक्षेत्र
क्रोशमेकं गयाशिरः।
तत्र पिण्डदानेन
तृप्तिर्भवति शाश्वती॥
*गया में पिंडदान करने से पितृ ऋण मुक्त हो जाता है व्यक्ति*
ब्रह्मा जी आगे कहते हैं कि गयागमनमात्रेण पितॄणामनृणो भवेत्॥ विष्णु पर्वत से लेकर उत्तरमानस तक का भाग गया का सिर है। उसी को फाल्गुतीर्थ भी कहा जाता है। यहां पर पिंडदान करने से पितरों को परमगति की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है।
गया क्षेत्र में भगवान विष्णु पितृ देवता के रूप विराजमान रहते हैं। पुण्डरीकाक्ष उन भगवान जनार्दन का दर्शन करने पर मनुष्य अपने तीन ऋणों से मुक्त हो जाता है। गया तीर्थ में रथमार्ग और रुद्रपद आदि में कालेश्वर भगवान केदारनाथ का दर्शन करने से मनुष्य पितृ ऋण से विमुक्त हो जाता है।
वहां पर पितामह ब्रह्मा का दर्शन करके वह पापमुक्त और प्रपितामह का दर्शन कर अनामय काकी प्राप्ति करता है। इसी तरह गदाधर पुरुषोत्तम भगवान विष्णु को प्रयत्नपूर्वक प्रणाम करने से उसका पुनर्जन्म नहीं होता है।
हे ब्रह्मर्षि! गया तीर्थ में मौन धारण करके जो व्यक्ति या महात्मा महात्मा कनकार्क का दर्शन करता है, वह पितृ ऋण से विमुक्त हो जाता है और ब्रह्मा की पूजा करके ब्रह्म लोक को प्राप्त करता है।
ब्रह्महत्या सुरापानं
स्तेयं गुर्वगनागमः।
पांप तत्संगजं सर्वं
गयाश्राद्धाद् विनश्यति।
गया तीर्थ खोलता है पितरों के लिए स्वर्ग लोक का दरवाजा:-
गया तीर्थ यात्रा के लिए मात्र घर से चलने वाले के एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिये एक-एक सीढ़ी बनते जाते हैं—
गृहाच्चलितमात्रस्य
गयायां गमनं प्रति।
स्वर्गारोहणसोपानं
पितॄणां तु पदे पदे॥
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि के समाप्त होने से लेकर आश्विन महीने की अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष पड़ता है। पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। बता दें कि पितृ पक्ष पूरे 16 दिनों के होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान पितर पृथ्वी लोक में ही वास करते हैं। इस दौरान पितरों का श्राद्ध, पिंडदान आदि करने शुभ फलों की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि जिन लोगों की मृत्यु हो जाती है। उनकी आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए बिहार के गया में पिंडदान किया जाता है। मान्यता है कि गया में पिंडदान करने पितरों को शक्ति मिलती है, जिससे वह परलोक तक आसानी से पहुंच जाएंगे। इसी के कारण गया में पिंडदान करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन क्या वास्तव में गया में पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिल जाती है। आइए जानते हैं गरुड़ पुराण के अनुसार, गया का महत्व के साथ क्या वास्तव में पितरों को तर्पण और पिंडदान करना सही है गया मे:-
*ब्रह्मा जी ने स्वयं बताया श्री गया जी की महत्ता*
गरुड़ पुराण में स्वयं ब्रह्मा जी ने कहा है कि जो व्यक्ति घर से पितरों का पिंडदान करने के लिए निकलता है। इसका घर से निकला हर एक कदम पितरों को स्वर्गलोक की ओर बढ़ता है। वे कहते हैं, ‘हे व्यासजी सभी समुद्र, नदी, वापी, कू आदि जितने भी तीर्थ है, ये सब गया तीर्थ में खुद स्नान करने के लिए आते हैं। इसमें किसी भी प्रकार का संदेह नहीं किया जा सकता है। गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नी गमन आदि महापाप करने वालों को भी लाभ मिलता है और इन पापों से मुक्ति मिल जाती है।
*खुलता है पितरों के लिए स्वर्गलोक का रास्ता*
ब्रह्मा जी आगे कहते हैं, जिन जातकों की मृत्यु संस्कार रहित दशा में हो जाती है या फिर पशु या फिर किसी चोर द्वारा, सर्प द्वारा आदि मारे जाते हैं, तो गया में पिंडदान करने से श्राद्ध कर्म के पुष्य से बंधन मुक्त होकर स्वर्ग चले जाते हैं। इस जगह पर पिंडदान करने से मनुष्यों को करोड़ों वर्षों तक किए गए पुण्य के बराबर फल की प्राप्ति होती है।
गया तीर्थ में पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर में ‘मुण्ड पृष्ठ’ नामक तीर्थ है, जिसका मान ढाई कोश विस्तृत कहा गया है। गया क्षेत्र का परिमाण पांच कोश और गया शिरका परिणाम एक कोश है वहां पर पिंडदान करने से पितरों को जरूर तृप्ति हो जाती है।
*हर देवी-देवता के दर्शन करने से मिलेगा विशेष फल*
ब्रह्मा जी आगे कहते हैं कि जो मनुष्य प्रातःकाल उठ करके गायत्री देवी का दर्शन कर विधि-विधान से प्रातः कालीन संध्या सम्पन्न करता है, उसे सभी वेदों का फल प्राप्त हो जाता। जो व्यक्ति मध्याह्न काल में सावित्री देवी का दर्शन करता है, वह यज्ञ करने का फल प्राप्त करता है। इसके साथ ही पर्वत पर विराजमान शिव जी के दर्शन करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही धर्मारण्य और पवित्र वन के स्वामी रामस्वरूप देवता के दर्शन करने से हर तरह के कर्जों से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही गौ के दर्शन करने से पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति हो जाती है। इसके अलावा स्वर्ग द्वारकेश्वर के दर्शन करने से मनुष्य भवबन्धन से मुक्त हो जाता है।
*पिंडदान करने से 21 पीढ़ियों का हो जाता है उद्धार*
या सा वैतरणी नाम
त्रिषु लोकेषु विश्रुता।
सावतीर्णा गयाक्षेत्रे
पितॄणां तारणाय हि॥
यहां पर स्थित कोटितीर्थ में जाने से मनुष्य को पुण्डरीक विष्णुलोक प्राप्त होता है। उस क्षेत्र में त्रिलोकविश्रुत वैतरणी नामक नदी है। वह उस गया क्षेत्र में पितरों का उद्धार करने के लिए अवतरित हुई है। जो श्रद्धालु वहां पर पिंडदान और गौ दान करता है, तो इसमें कोई शक नहीं हाँ कि वह अपने 21 पीढ़ियों का उद्धार कर रहा है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ – 02 नवम्बर 2024