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(2 अक्टूबर पर विशेष) राष्ट्र पिता गांधी जी

(2 अक्टूबर पर विशेष)
राष्ट्र पिता गांधी जी

गांधी हमारे राष्ट्रपिता है,लोग उन्हें बापू भी कहते हैं,
तन पर धोती,हाथ में लाठी,भारतीय मुद्रा पर रहते हैं।
करमचंद गांधी और पुतलीबाई के थे वे लाल,
सत्य और अहिंसा,सत्याग्रह में थे उनके ढाल।

पोरबंदर गुजरात में,गांधीजी का अवतरण हुआ था,
विश्व में गांधीजी की शिक्षाओं का,वितरण हुआ था।

वकालत करने हेतु दक्षिणी अफ्रीका वे चले गए,
वहां पर भी एक बुढ़िया और उनकी बेटी से छले गए।

मांस खाना,झूठ बोलना उनको नहीं आता था,
पराई स्त्री देखना,उनको बिल्कुल नहीं भाता था।

1915 में गांधीजी अफ्रीका से,भारत लौटकर आए थे,
ब्रिटिश राज का शोषण देखकर,बहुत पछताये थे।

गांधीजी ने भारत में कुछ करने,की ठाणी थी,
लोगों को संगठित करने हेतु,बोली मीठी वाणी थी।

दांडी यात्रा करके नमक कानून को तोड़े थे,
इसी बहाने किसानों और मजदूरों से नाता जोड़े थे।

अंग्रेजों भारत छोड़ो का शंखनाद गांधी ने किया था,
जय हिंद,जय भारत का नारा सहज से दिया था।

15 अगस्त 1947 में भारत आजाद हुआ था,
गांधीजी का सपना तब जाकर साकार हुआ था।

30 जनवरी को गांधीजी पर भारी विपदा आई,
प्रार्थना सभा में जाते हुए पर,गोडसे ने गोली चलाई।

मरते-मरते गांधीजी से मुख से निकला हें राम,
देशभक्त गांधीजी ने आजाद करने का किया काम।

गांधीजी का प्रिय भजन था रघुपति राघव राजा राम,
गांधी जी ने जन-जन को पिलाया,सत्य का जाम।

गांधी जी के तीन अनोखे बंदर,हमें प्रेरणा देते हैं,
बूरा न देखो,बूरा न सुनो,बुरा न बोलो,धारण करते हैं।

गांधीजी को 2अक्टूबर पर,करते कोटि-कोटि प्रणाम,
ऐसे महापुरुष की प्रेरणा से,ऊंचा करें भारत का नाम।

कवि – मुकेश कुमावत मंगल
खरेडा टोंक

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