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गांधीजी का शैक्षिक दर्शन और उसकी वर्तमान में प्रासंगिकता

गांधीजी का शैक्षिक दर्शन और उसकी वर्तमान में प्रासंगिकता

महात्मा गांधी का शैक्षिक दर्शन उनके व्यापक जीवन दृष्टिकोण और उनके स्वराज्य के सिद्धांतों पर आधारित था। उनका मानना था कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास, चरित्र निर्माण, और समाज सेवा के लिए होना चाहिए, न कि केवल रोजगार पाने का साधन। गांधीजी ने ‘नैतिक शिक्षा’ पर विशेष जोर दिया और शिक्षा के माध्यम से स्वावलंबन को प्रोत्साहित करने की वकालत की।
गांधीजी का शैक्षिक दर्शन मुख्यतः तीन महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित था:
1. बुनियादी शिक्षा : गांधीजी ने ‘बुनियादी शिक्षा’ का विचार प्रस्तुत किया, जिसका उद्देश्य छात्रों को प्रारंभिक जीवन से ही शारीरिक श्रम और व्यावहारिक कार्यों से जोड़ना था। इसमें हस्तकला, कृषि, और घरेलू उद्योग जैसे कौशलों को शिक्षा का अभिन्न अंग बनाया गया था। उनका मानना था कि शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि छात्रों को श्रम और उत्पादन के महत्व को समझना चाहिए।
2. स्व-निर्भरता और नैतिक विकास: गांधीजी की शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य न केवल बौद्धिक विकास था, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक विकास भी था। उन्होंने सिखाया कि व्यक्ति को अपने जीवन के हर पहलू में आत्मनिर्भर होना चाहिए। उनके अनुसार, शिक्षा का अंतिम उद्देश्य आत्मानुभूति और सत्य की खोज होनी चाहिए।
3. मातृभाषा में शिक्षा: गांधीजी का मानना था कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए, क्योंकि इससे छात्रों में समझ बढ़ती है और उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में आसानी होती है। विदेशी भाषाओं में शिक्षा के प्रति उनकी आलोचना थी, क्योंकि इससे बच्चों की रचनात्मकता और नैतिक मूल्यों का विकास सही ढंग से नहीं हो पाता।
गांधीजी के शैक्षिक दर्शन की वर्तमान प्रासंगिकता:
1. व्यावहारिक और कौशल आधारित शिक्षा: आज के समय में व्यावहारिक और कौशल आधारित शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है। गांधीजी के ‘बुनियादी शिक्षा’ के सिद्धांत के अनुसार, वर्तमान समय में ‘स्किल इंडिया’ और ‘वोकेशनल ट्रेनिंग’ जैसे कार्यक्रम छात्रों को केवल सैद्धांतिक ज्ञान देने के बजाय उन्हें व्यावहारिक रूप से कुशल बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
2. मूल्य आधारित शिक्षा: आज नैतिक शिक्षा की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। गांधीजी ने चरित्र निर्माण और नैतिक मूल्यों की शिक्षा पर जोर दिया था, जो आज भी महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से ऐसे समय में जब समाज में नैतिक पतन देखने को मिलता है।
3. स्थानीय भाषाओं में शिक्षा: आज भी मातृभाषा में शिक्षा देने पर जोर दिया जा रहा है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) भी इस बात पर बल देती है कि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में दी जानी चाहिए, ताकि बच्चों को बेहतर समझ हो सके और वे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहें।
4. सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी: गांधीजी का शैक्षिक दर्शन शिक्षा को सामाजिक बदलाव का साधन मानता था। वर्तमान समय में शिक्षा को सामाजिक जिम्मेदारी और सेवा से जोड़ने की आवश्यकता है, ताकि युवा अपने समाज के प्रति जागरूक और उत्तरदायी बनें।
इस प्रकार, महात्मा गांधी का शैक्षिक दर्शन आज भी प्रासंगिक है और समग्र शिक्षा प्रणाली के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
डॉ. ओम ऋषि भारद्वाज
प्रवक्ता, असीसी कॉन्वेंट (सी. सै.) स्कूल एटा, उत्तर प्रदेश 207001

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