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शहीद- ए -आजम सरदार भगत सिंह

शहीद- ए -आजम सरदार भगत सिंह

आओ सुनाएं भगत सिंह की अमर कहानी
जिसे पाकर धन्य हुई भारत देश हमारी
जिसकी गाथाएं याद कराती हैं कुर्बानी
23 मार्च सन् 1931की शाम सात बजे सुखदेव और राजगुरु के संग
हंसते -हंसते देश के लिए अपना जीवन किया बलिदान
आओ सुनाएं भगत सिंह की अमर कहानी
वो दर्दनाक दृश्य को मैं बयां करती हूं
फांसी की कोठरी आज बन गई थी एक रंगशाला
झूम -झूम कर गीत गा रहे थे
भगत जी गा रहे थे चले हम पहन बसंती चोला
झनझनाती बेड़ियां मानों ताल दे रहीं थीं
झूम रहे सुखदेव और राजगुरु भी थे
भगत सिंह बोले-आज हमें बसंती चोला मां तू पहना दे
अपने सुंदर हाथों से सजा दे
बलिदानी का पुण्य पर्व
यह बन गया त्योहार मरण का
यम ने कहा सामने जल रखकर
स्नान करो, पावन कर लो,तुम सब चोला
मृत्यु खड़ी थी अब सामने
बढ़ चले अब तीनों शहादत देने
बोले सुखदेव बलिदानी का पहले मेरा हक है
तर्क राजगुरु का था, सबसे छोटा हूं मैं भाई
पहले शहादत की मेरी बारी है आई
फिर भगत सिंह ने समझाया
जब दो झगड़े तो तीसरे की तब बन जाती है
इसलिए पहले मैं फंदे पर लटकूं
यही है मेरी कामना
ये सब देख चकित हुये न्याय नीति के अधिकारी
कहने लगे क्या..? किसी ने देखे हैं
इन जैसे अलबेलों को
वन्दनीय है इन अलबेले मस्तानों की हस्ती
मिला जब शासन का आदेश
बताओ अपनी अंतिम इच्छाएं
उत्तर दिया, मुक्ति कुछ पल के लिए हम बंधन से पायें
और फूट पड़े इनके कंठों से
इन्क्लाब के नारे
इन्क्लाब हो अमर हमारा
इन्क्लाब की जय हो
इस तरह से नारों के उच्च स्वर में थे तीनों डूबे
हंसते -हंसते झूल गए थे फांसी के फंदों पर
भारतमाता की रक्षा की खातिर
किया जीवन अर्पित मस्तानों ने हंसकर
हम सभी याद करते रहें यह अमिट बलिदान की कहानी
भारत के लाल को कोटि-कोटि नमन!!

डॉ मीना कुमारी परिहार

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