पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी का प्रेरक व्यक्तित्व
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी का प्रेरक व्यक्तित्व
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्म 25 सितम्बर 1916 को मथुरा, उत्तर प्रदेश के नगला चंद्रभान नामक गाँव में हुआ था। वे एक महान राष्ट्रवादी नेता, विचारक और भारतीय जनसंघ (जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी) के प्रमुख स्तंभों में से एक थे।
उनकी मृत्यु 11 फरवरी 1968 को रहस्यमय परिस्थितियों में हुई थी। उनका शव मुगलसराय (अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन) रेलवे स्टेशन के पास रेल की पटरियों पर पाया गया था। उनकी मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है और इसे भारतीय राजनीति के एक दुखद अध्याय के रूप में देखा जाता है।
दीनदयाल उपाध्याय जी का जीवन सादगी, निस्वार्थ सेवा और देशभक्ति का प्रतीक रहा है। उनके जीवन से जुड़े कई मार्मिक प्रसंग हैं जो उनके व्यक्तित्व और विचारधारा को उजागर करते हैं। एक ऐसा ही प्रसंग है जो उनकी विनम्रता और समाज के प्रति उनकी गहरी संवेदनशीलता को दर्शाता है।
कहा जाता है कि एक बार पंडित दीनदयाल उपाध्याय किसी गाँव में प्रवास के दौरान एक निर्धन किसान के घर रुके थे। उस किसान के पास इतनी भी व्यवस्था नहीं थी कि वह दीनदयाल जी को अच्छे भोजन या आराम देने का प्रबंध कर सके। लेकिन, फिर भी उसने अपनी पूरी क्षमता से उनका सत्कार किया। जब दीनदयाल जी ने देखा कि किसान खुद भूखा रहकर उन्हें भोजन परोस रहा है, तो उन्होंने उस किसान से कहा, “आप यह भोजन मुझ पर व्यर्थ न करें। यह आपके परिवार के लिए अधिक महत्वपूर्ण है।”
किसान के आग्रह पर, पंडित जी ने केवल थोड़ा सा भोजन ग्रहण किया और फिर बाकी भोजन किसान और उसके परिवार को दे दिया। इस घटना ने दिखाया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय न केवल विचारधारा में बल्कि वास्तविक जीवन में भी जनमानस के साथ जुड़े हुए थे। उनकी सादगी, त्याग और दूसरों के प्रति संवेदनशीलता उनके व्यक्तित्व की पहचान थी, और यह प्रसंग उनकी इसी भावना का प्रतीक है।
यह मार्मिक प्रसंग बताता है कि कैसे पंडित दीनदयाल उपाध्याय गरीबों और वंचितों के लिए अपने जीवन को समर्पित किए हुए थे, और उनका उद्देश्य केवल राजनीतिक गतिविधियों तक सीमित नहीं था, बल्कि समाज के हर वर्ग की सेवा करना था।
डॉ. ओम ऋषि भारद्वाज
प्रवक्ता, असीसी कॉन्वेंट (सी. सै.) स्कूल एटा उ. प्र. २०७००१