हिंदी साहित्य भारती, ब्रज प्रांत के तत्वावधान में हिंदी दिवस के पावन अवसर पर ‘हिंदी साहित्य की वर्तमान दशा और दशा ‘विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया ।
हिंदी साहित्य भारती, ब्रज प्रांत के तत्वावधान में हिंदी दिवस के पावन अवसर पर ‘हिंदी साहित्य की वर्तमान दशा और दशा ‘विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया ।
शिक्षक सत्येंद्र भारद्वाज के महाराणा प्रताप नगर स्थित आवास पर आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता आचार्य डॉ.प्रेमीराम मिश्र ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में जे.एल.एन पी.जी.कॉलेज,एटा के पूर्व प्राचार्य डॉ राकेश मधुकर सहभागी रहे ।शिक्षिका श्रीमती नीलम सिंह भी मंच पर उपस्थित रहीं। माता सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं सरस्वती वंदना के बाद ध्येय गीत गीत का सामूहिक गायन हुआ ।आरंभ में प्रांतीय अध्यक्ष डा.ओम ऋषि भारद्वाज ने हिंदी साहित्य भारती के अंता राष्ट्रीय स्तर से लेकर जनपद स्तर तक की भूमिका एवं उद्देश्यों से अवगत कराया। डिवाई से पधारे डिग्री कॉलेज के प्राचार्य डॉ राजीव चतुर्वेदी ने वेदना भरे स्वर में कहा कि हम चाहते ही नहीं कि हमारा बच्चा हिंदी सीखें ।हिंदी को हम अपने घर में प्रवेश नहीं कराना चाहते हैं ।शिक्षिका श्रीमती नीलम सिंह ने कहा कि हिंदी को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए बच्चों को हिंदी माध्यम के स्कूलों में प्रवेश कराना चाहिए ,जिससे कि उनमें हिंदी के प्रति लगाव उत्पन्न हो। डॉ राजेंद्र सिंह चौहान ‘राज’ ने बताया कि हिंदी ऐसी भाषा है जो जैसी बोली जाती है, वैसी ही लिखी जाती है ।अपने वक्तव्य के बाद आपने काव्य पाठ किया- हिंदी है सिरमौर हमारी भाषा हिंदुस्तान की ।दीन बंधु दीनानाथ महाविद्यालय ,एटा के प्राचार्य डॉ.सुधीर पालीवाल ने हिंदी की प्रगति के विषय में विचार व्यक्त किये और कविता पढ़ी- हिंदी है अपने देश की पहचान दोस्तो। वीर रस के ओजस्वी कवि बलराम सरस ने कहा कि आज हिंदी में स्तरीय कवियों, साहित्यकारों और पत्रकारों का अभाव होता जा रहा है ।आपने स्वतंत्रता के बाद से हिंदी के प्रति किए गए व्यवहार के प्रति अपना आक्रोश व्यक्त किया और उदाहरण सहित अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये। शिक्षक ललित कुलश्रेष्ठ ने राजभाषा हिंदी के विषय में गंभीर चिंतन प्रस्तुत किया। डॉ राकेश मधुकर ने अपनी विदेश यात्राओं के अनुभव के आधार पर बताया कि किस प्रकार हिंदी विदेश में भारतीय सांस्कृतिक चेतना को जीवंत किए हुए है। अध्यक्षीय उद्बोधन में आचार्य प्रेमीराम मिश्र ने कहा कि मैकाले ने हमारी सांस्कृतिक चेतना में अंग्रेजी का मट्ठा डालकर उसे विकृत कर दिया है। इसीलिए हम अब भी अंग्रेजी भाषा की गुलामी में झोभ और आक्रोश व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। यद्यपि विश्व में आज 135 करोड़ लोग ऐसे हैं जो हिंदी बोलते अथवा समझते है ,किंतु यह विडंबना ही है कि हम स्वामी दयानंद सरस्वती ,सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी ,लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसी विभूतियां की अभिलाषा पूर्ण कर हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित नहीं कर पा रहे हैं ।आयोजन का कुशल संचालन ललित कुलश्रेष्ठ द्वारा संपन्न हुआ।