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हास व्यंग्य

आजकल हम सब निठल्ले से पड़े हैं,
और पड़े पड़े ट्वेन्टी ट्वेन्टी का मैच खेल रहे हैं।
एक फेंक रहा है बाकी सब कैच कर रहे हैं,
स्वयं किए कैच पर विश्वास नही है तो स्टंपिंग कर रहे हैं।
सफेद दाढ़ी वाले सब विश्व गुरु की रेस में हैं,
ज्यादा किसी ने बाबागिरी दिखाई तो फंसे केश में हैं।
महापुरुषों के अनमोल वचन सुप्रभात में काम आ रहे हैं,
जो चुनाव जीत गया उसी के चमचे गुण गा रहे है।
बड़ा अजीब दौर है आज कल का मेरे शहर में,
खाने पीने का हर चीज बदल गया है अब जहर में।
विलायती सूट पहन कर हम सनातन का ध्वज लहरा रहे है,
चाइनीज फूड खाकर देश प्रेम के गीत गा रहे हैं।
सच मानों सारे सफेद पोश एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं,
जनता मासूम है इनके ही नाम सत्ता के सारे पट्टे है।

कवि संगम त्रिपाठी
जबलपुर मध्यप्रदेश

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