ज़िन्दगी की रफ्तार
ज़िन्दगी अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती है
यानी उम्र जीवन की हर पल घटती है
जैसे रेत ले लो मुट्ठी में
फिर वो धीरे धीरे फिसलती है।
ज़िन्दगी के हर पल को जीना सीख लो
छोटी छोटी खुशियों में बड़ी खुशियाँ ढूँढ़ लो
ज़िन्दगी संगम है खुशी और ग़म का
क्या पता अगले पल क्या होगा।
करते रहते हैं ज़िन्दगी में इंतज़ार
कि कुछ होगा बड़ा सा चमत्कार
दौड़ते रहते हैं मृग मारीचिका के पीछे सदा
नहीं देख पाते बिखरी पड़ी खुशियाँ हज़ार।
होश आता है जब निकल जाती है ज़िन्दगी पूरी
रह जाती हैं ख्वाहिशें सब आधी अधूरी
अब ज़िन्दगी के ऐसे मोड़ पर आ जाते हैं
पीछे जा नहीं सकते और आगे के रास्ते हमें आजमाते हैं।
©प्रदीप त्रिपाठी “दीप”
ग्वालियर(म.प्र.)