नमः शिवाय
माथे से जिनके चंद्रमा की रश्मियां निकल रही,
केशों के मध्य जिनके स्वयं भागीरथी सो रही,
कानों में बिच्छुओं के कुंडल कंठ नाग हार है,
यही,तो डमरू धारी शिवशंभू का
परिवार है।
है जिनके पुत्र गणपति और कार्तिकेय लाल है,
वामा है उनकी पार्वती त्रिनेत्र उनके भाल है ।।
संपूर्ण सृष्टि जिनके सम्मुख नत खड़ी है सिर झुकाए,
बस एक ध्वनि निकल रही नमः शिवाय नमः शिवाय।।
गौरा ने भक्ति जब करी शिव को जगाना था कठिन ,
त्यागा था, अन्न जल और अपर्णा रूप संग तुहिन
शिव को जगाने कामदेव हिम्मत जुटा आगे बढ़ा
पुष्प खिले उस समय भ्रमर भी फूलों पर उड़ा ,
त्रिनेत्र खुला शंभू का कामदेव भस्म था
विकल हुई रति मनाया काम तबअनंग था ,
रूप देख शिव का घबराए देव सर झुकाए
बस एक ध्वनि निकल रही नमः शिवाय नमः शिवाय।।
,
पंचाक्षरी मंत्र से मानते देवगण
शिव शंभू को
गंगाधराय जटाधराय नीलकंठ
, महादेव को
वह जिनमें तीन नेत्र है, माथे विराजे
चंद्रमा,
संग सोहे भूत प्रेत पिशाच रुप है
निरुपमा
है जिनके हाथ में त्रिशूल, मिटाते कष्ट को समूल,
जो माफ करते भक्त को चाहे करे बड़ी भूल,
है मान कर जिन्हें गुरु -2और देव
नहीं भाए,
बस एक ध्वनि निकल रही नमः शिवाय नमः शिवाय।।
है जिनके अंक में अनंत सृष्टियां हैं खेलती,
है जिनके शीश पर स्वयं गंगा भी
आकर रुकती,
रोक कंठ में जहर-2 सृष्टि जो
चला रहा,
बढ़ी क्रोधाग्नि जब कभी सृष्टि को जला रहा
वीरभद्र, शरभ, महाकाल जिसके रूप है
महा विशाल और अति सूक्ष्म भी स्वरूप है
ऐसे महादेव छोड़ और देव
किसे भाए।
बस एक ध्वनि निकल रही नमः शिवाय नमः शिवाय।।
पुष्पा पाठक
छतरपुर मध्य प्रदेश