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खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी !

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी !
महारानी लक्ष्मीबाई, जिन्हें झांसी की रानी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख और अद्वितीय वीरांगना थीं। उनका जन्म 19 नवंबर 1828 को काशी में हुआ था। लक्ष्मीबाई का वास्तविक नाम मणिकर्णिका था, और उन्हें प्यार से ‘मनु’ कहकर पुकारा जाता था। उन्होंने बचपन में ही घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्ध-कला में निपुणता हासिल कर ली थी।
1835 में उनका विवाह झांसी के महाराज गंगाधर राव से हुआ और वे झांसी की रानी बनीं। दुर्भाग्यवश, 1853 में गंगाधर राव के निधन के बाद ब्रिटिश सरकार ने ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ नीति के तहत झांसी का राज्य हड़पने की कोशिश की। 1857 की क्रांति के दौरान महारानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अदम्य साहस का परिचय दिया। उन्होंने अपनी सेना का नेतृत्व किया और युद्धभूमि में स्वयं उतरकर अंग्रेजों से भयंकर संघर्ष किया। ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’ के उनके कथन ने देशभक्ति और साहस का प्रतीक बनकर भारतीय इतिहास में अमर कर दिया।
18 जून 1858 को ग्वालियर के पास युद्ध करते हुए रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुईं। उनका जीवन और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्त्रोत बने रहे। उनके साहस और राष्ट्रभक्ति की गाथा आज भी हर भारतीय के दिल में जीवित है। महारानी लक्ष्मीबाई की जयंती पर हम सभी को उनके अदम्य साहस, दृढ़ निश्चय और मातृभूमि के प्रति उनके त्याग को स्मरण करते हुए अपने देश के प्रति निष्ठा और साहस के मार्ग पर चलने का प्रण लेना चाहिए। उनकी वीरता हमें सिखाती है कि कड़ी से कड़ी परिस्थितियों में भी आत्मसम्मान और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संघर्ष करना सबसे महत्वपूर्ण है।
डॉ. ओम ऋषि भारद्वाज, कवि एवं साहित्यकार; एटा

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