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भगतसिंह से संवाद

भगतसिंह से संवाद

एक दिन मैं रात को सोने ही वाला था,
वास्तविक जीवन से,स्वप्न लोक में खोने वाला था।
कि भगत सिंह का आया फोन,
बोला कि,आप बोल रहे हैं कौन।
मैंने कहा,एम.के.स्पीकिंग टोंक,राजस्थान,
जय भारत,जय हिंदुस्तान।
इतना भगत सिंह ने सुना,
मन ही मन गुना,
फिर पहले तोले और मुंह खोले,
कि आप उस हिंदुस्तान में रह रहे हो,
जिसके लिए हम फांसी पर चढ़े थे,
हिंदुस्तान की आजादी हेतु आगे बड़े थे,
भारत की स्वतंत्रता,समानता,अखंडता,संप्रभुता हेतु बलीवेदी पर चढ़े थे,
हमने इंकलाब का नारा दिया था,
जीवन हमारा लगा दिया था,
भगत सिंह की बातें सुनकर ऑंखों में ऑंसू भर आए,
हम कुछ बोल नहीं पाए,
भगत सिंह ने हैलो-हैलो किया,
हमारी चेतना में जोश भर दिया।
हमने कहाॅं,भारत भी वही है,
हिंदुस्तान भी वही है,
पर यहाॅं के लोग बहुत बदल गए,
मानो ऐसा लगता है,आपके प्रयास विफल गए।
चारों ओर भ्रष्टाचार है,भोली-भाली जनता लाचार है,
गरीब,गरीब और अमीर,अमीर होता जा रहा है,
अपने देश को अपना ही खा रहा है
कोर्ट-कचहरी पैसों में बिक रहे हैं,
मीडिया अपनी-अपनी पार्टी की लिख रहे हैं,
झूठ, फरेब,चोरी,अन्याय बढ़ते जा रहे हैं,
रक्षक ही भक्षक और जातिवाद में बढ़ते जा रहे हैं।
इतनी बात सुनकर भगत सिंह हो गए मौन,
मैंने कहा,
अब जनता को सच्ची राह दिखाएगा कौन।
आप पुनः अवतार लेकर आ जाओ,
भारत को भारत,हिंदुस्तान को हिंदुस्तान बना जाओ।
इतने में मेरा स्वप्न टूट गया,
सारे बदन पर पसीना छूट गया।
मैंने सोचा,
मैंने सबकी बुराई कर दी,
ज्यादा ही चतुराई कर दी।
अब मेरा क्या होगा,
तभी मुझे मेरे गुरु की बात याद आ गई,
मेरी सारी चिंताओं को खा गई।
गुरुजी ने कहा था,
होगा वही जो राम ने रच दिया है,
भगतसिंह जी आप सो जाओ,
मैंने फोन रख दिया है।।

कवि मुकेश कुमावत मंगल टोंक राजस्थान।

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