लाल
लाल
दुनिया में आए हम दुनिया में ही समाए।
दुनिया का खेल नहीं यूं समझ आता है।
कल तक घुटनों से चलकर ही फिरा जो
आज कहाँ सरपट दौड़ा चला जाता है
एक किलकारी से ही मां को आया ये समझ
भूख से ही लाल मेरा लाल हुआ जाता है
लाल बड़ा होते-होते दुनिया में खोते-खोते
बूढ़े माई बाबा का ही खून चूस जाता है।
पाई-पाई जोड़े रखा जिसके के लिए ही सब
मौका देख धीरे-धीरे सब खिसकाता है
हाथ झाड़ हुए खाली बगिया के बूढ़े माली
उन्हें घर छोड़ने की धौंस वो दिखाता है
काम नहीं काज नहीं घर में अनाज नहीं
छोटा बच्चा घूंट भर दूध नहीं पाता है
मदिरा में झूम-झूम, सड़कों को चूम-चूम
लाल बदहाल झूमे खाली हाथ आता है
कैसा था ये गांँव मेरा कैसा छाया है अंधेरा
घर-घर तम्बाकू में उड़ा चला जाता है
मदिरा का है चलन खूब रमा है व्यसन
गाँव सारा धुआँ-धुआं हुआ चला जाता है।
तारीखों में तारीख है गल्ले के ऐलान वाली
राशन समेटे लाल भागा चला जाता है
खेत में है नाम चला खेती का न नामोनिशां
पैग मार झूमने को छः हजार पाता है।
कारखाने बेच रहे नशे का सामान खूब
थोक फुटकर माल लदा चला आता है
गांव-गांव घर-घर झूम रहे हैं शहर
दीवारों पे लिख कर उन्हें रोका जाता है
फूंक रहे सिगरट कश मार भर- भर
धीरे-धीरे जिंदगी का काम हुआ जाता है
मत पी तू ये ज़हर पढ़ कर आगे बढ़
पोस्टर दीवार पर लिखा रह जाता है
टूटा ऐसा है कहर सूना-सूना हुआ घर
आहुति नशे में दिए सब छोड़ जाता है
माई रोए बाप रोए रोए बीवी बच्चे सब
लाल ये जो सब बदहाल कर जाता है
जगदीश चन्द्र जोशी