भगवद्गीता की प्रासंगिकता
भगवद्गीता की प्रासंगिकता
जाड़ा, गर्मी और बरसात का असर,
जग के हर इन्सान के ऊपर पड़ता है,
इंसान परिस्थितियों का दास ही है,
उन पर निर्भरता तो स्वाभाविक है।
काव्य कल्पना कदाचित सत्य और
वास्तविकता पर आधारित होती है,
सरल स्वभाव का मानव कविता को
न समझ सके यह भी स्वाभाविक है।
श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीतोपदेश,
सरल हृदय पार्थ के लिये दिया था,
शतकोटि बार अध्ययन करोगे फिर
भी गीता का ज्ञान न समझ सकोगे।
गीता जीवन यथार्थ के साक्षात्कार
से अब भी जीने की कला सिखाती है,
जितनी पूर्व में थी गीता के उपदेशों
की ज़रूरत, उतनी ही आज भी है।
भगवद्गीता एक ऐसा अनुपम ग्रंथ है,
जिसका हर एक श्लोक एक मंत्र है,
कोई शब्द सदुपदेश विहीन नहीं है,
इसके अनेक अनुवाद विश्व धरोहर हैं।
भगवद्गीता योगेश्वर श्रीकृष्ण वाणी है,
इसके श्लोकों में ज्ञानरूपी प्रकाश है,
जिनके प्रस्फुटित हो जाने मात्र से ही
अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है।
आदित्य गीता द्वापर के महाभारत में,
किंकर्तव्यविमूढ़ पार्थ को समझाने के
हेतु श्रीकृष्ण के द्वारा कही गई है,
उपदेशों की प्रासंगिकता आज भी है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ