Search for:

आजादी की अमरगाथा।

 

ये प्रकृति सबकी है।पेड़-पौधे,नदी-झरने,जंगल,पशु- पक्षी,कीट-पतंग,कंकड़-पत्थर तथा अन्य सभी प्राणियों का इसमें एकाधिकार है।पर मनुष्य नाम का इस प्राणी ने प्रकृति पर अपना सर्वाधिकार स्थापित करने की कोशिश करने लगा।शक्ति और चतुराई का भरपूर उपयोग करते हुए;मनुष्य ने दूसरों की आजादी एवं उनके जीवन-यापन पर हस्तक्षेप करने लगा।जैसे-जैसे इस मनुष्य नाम के प्राणी ने विकास किया;वैसे-वैसे उसने दूसरे की आजादी पर अंकुश लगाना भी शुरू कर दिया। बात यदि किसी एक क्षेत्र तक सीमित रहती,तो शायद बात कुछ और ही होती।परंतु मनुष्य अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए व्यक्तियों एवं देशों को गुलाम बनाने एवं धरती की अपार संपदा को अपने अधीन करने में जुट गया।
बस!मनुष्य की इसी कुत्सित सोच और षड्यंत्रकारी कपट से पूर्ण विचारधारा के कारण शक्ति और सेनाओं से संपन्न राजाओं ने दूसरे देशों पर आक्रमण करना शुरू किया और उन्हें जीत कर उस देश को अपना गुलाम बना लिया। ‘आजादी की अमरगाथा’ के अंतर्गत गुलाम भारत से आजाद भारत की तस्वीर को पेश करने की एक छोटी-सी कोशिश की गई है।मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक भारतीयों को गुलामी की असहनीय पीड़ा सहनी पड़ी। जिसके कारण कई देशप्रेमियों,क्रांतिकारियों ने भारत की आजादी के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया।

आजादी हुस्न नहीं,वतन पे शहादत है यारों!
आजादी जश्न नहीं,खुदा की इबादत है यारों!
अपने लहू से रंगा जब रूह को उन दीवानों ने,
तब कहीं मिली है हमें आजादी-ए-जन्नत यारों!

पिंजड़े में बंद किसी परिंदे से पूछो! कि आसमान की मौज क्या होती है। कैसे तड़पता है! वह बंद दीवारों के भीतर,लहू से लथपथ! खुद को लहूलुहान कर,.क्यों पिंजड़े से वो बाहर आना चाहता है?

क्या होता है पंख का फैलाना,
क्या होता है उड़कर दूर-दूर चले जाना?
कैसे सजते हैं उसके सपने सलोने,
कैसे सजाता है वह अपना आशियाना।

रहता है वो मस्त!अपनी दुनिया में,
बेखौफ! बेझिझक आजाद वो परिंदा,
पिंजड़े से बाहर शायद!कुछ अधिक पल ,
जी पता है वो जिंदगी के सफ़र में जिंदा।

स्वतंत्रता, यानी आजादी मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है। इसके बिना मनुष्य की स्थिति बेजुबान जानवरों जैसी होती है। मनुष्य की वास्तविक प्रगति उसके स्वतंत्र हुए बिना असंभव है। कोई भी राष्ट्र तब तक सही मायने में राष्ट्र नहीं बनता जब तक उसके नागरिक अपने अधिकारों के प्रयोग हेतु पूरी तरह स्वतंत्र नहीं होते।

आजादी सबको प्यारी है।इस संसार में हर प्राणी आजाद,मस्तमौला होकर रहना और जीना चाहता है। कोई भी नहीं चाहता है कि वह किसी के बंधन में,उसकी गुलामी में अपनी सारी जिंदगी बिताए।कलकल बहती नदियां हों या सर-सर बहती हवाएं हर कोई स्वतंत्र भाव एवं स्वेच्छा से बहना,प्रवाहित होना और गति करना चाहता हैं। किसी गाय के बछड़े को खूंटे से बांध दिया जाए,तो वह कुछ ही पलों में छटपटाने लगता है।अपनी मस्ती में खेलते-कूदते किसी शिशु के दोनों हाथों को यदि बांध दिया जाए,तो वह खोलने की जिद्द में रोता-बिलखता है।यदि नदियां बहना बंद कर दे, तो जल की निर्मलता,उसका जीवन वहीं रुक जाता है। वैसी ही किसी व्यक्ति को किसी बंधन,गुलामी में रख दिया जाए,तो वह जीते जी मर जाता है।
अर्थात! अधिकारपूर्ण स्वतंत्र भाव से जीना केवल आजादी ही नहीं,जिंदगी है।ठीक उसी प्रकार गुलामी या पराधीनता,परावलंबन भाव में जीना.. जिंदगी नहीं,जीते जी मौत है।
इन्हीं जज्बातों की आग जब देश के नौजवानों,देश प्रेमियों के तन-बदन में लगी,तो वे तिलमिला उठे।
और कहने पर मजबूर हो गए कि……….

वतन हमारा है,हम वतन पर जान अपनी लुटा देंगे।
जीते जी अपने वतन को,गुलाम हम ना होने देंगे।
फट जाए चाहे ये धरती,गिर जाए चाहे वो अंबर,
गोरों से वतन को आजाद करके ही,हम दम लेंगे।

भारत की आजादी की जो गाथा है,वह सामान्य-सहनीय कष्टों की गाथा नहीं है,बल्कि असहनीय,अतिपीड़ादायक
एवं मृत्यु से गुजर जाने वाले वीरों की अमरगाथा है।
जहां भारतीयों को मुगलों के अत्याचारों एवं जुल्मों से रूबरू होकर कई वर्षों तक जिंदगी गुलामों की तरह बितानी पड़ी,वहीं अंग्रेजों के भारत में कदम रखते ही भारतीयों की गुलामी,और अधिक पक्की हो गई। मानो!हिंदुस्तानियों के भाग्य का सूर्य हर समय के लिए अस्त हो गया हो,उनके जीवन में चारों तरफ केवल घोर अंधेरा ही अंधेरा छा गया हो। पर भारतीयों को,सच्चे हिंदुस्तानियों को मुगलों और अंग्रेजों की गुलामी सहर्ष स्वीकार नहीं थी।अपनी मिट्टी और भारत की आजादी के लिए वो जान हथेली और सर कफन में बांध कर दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हो गए।जहां मुगलों के अत्याचार से भारत के शेरों ने उनके जबड़े उखड़ डालें,वही भारतीय वीरों ने अंग्रेजों के सीना में बैठकर उन्हें छठी का दूध भी याद दिला दिया।

कट जाए सर मगर कोई गम नहीं,
मिट जाए हम मगर कोई _गम_ नहीं।
पर मैं देश को कभी झुकने ना दूंगा,
मैं देश को कभी मिटने ना दूंगा।

कुछ इन्हीं विराट भव्य इरादों को लेकर देश के वीरों ने, देश को आजाद कराने में किसी कठोर तपस्वी की तरह साधना में लिप्त हो गए और अपने अथक संघर्षों, कुर्बानियों के बल पर देश को आजाद करवाया।

भारत को आजाद करवाने में,देश का बच्चा-बच्चा जी- जान से लगा था और इसलिए पूरब से लेकर पश्चिम तक तथा उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारतीय सर जमीन पर जन्म लेने वाला हर सच्चा हिंदुस्तानी देश की आजादी का बागडोर संभाले,आजादी के अग्निकुंड में खुद को झोंकते हुए देश को आजाद करवाया।

किस्से नहीं,कहानियां नहीं,
है ये महासंघर्ष की महागाथा।
सदियों तक अमर रहेगी,
ये आजादी की अमरगाथा।

‘ ।।प्रतिज्ञा।।
आओ!हम देश की आजादी का अमृत महोत्सव मनाएं,
देश खुशहाल,आज़ाद रहे,आओ! यह प्रतिज्ञा अपनाएं।

।।जय हिन्द।।

लेखक- *पी.यादव ‘ओज’* झारसुगुड़ा,ओडिशा।

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required